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गौण मे वैदिक क्रिया-कायों पर लोगों का बहुत अधिक विश्वास था विशेष लाभ नहीं उठा सकती थी। वेदादि पढ़ने के एक मात्र अधिकारी
शास्त्र संस्कृत भाषा में होने से साधारण जनता उनसे ब्राह्मण ही माने जाते थे
ईश्वर एक विशिष्ट शक्ति है। संसार के सारे कार्य उसी के द्वारा परिचालित हैं। सुख दुख कर्मफल दाता ईश्वर ही है। विश्व की रचना भी ईश्वर ने ही की है इत्यादि बातें विशेष रूप से सर्वजनमान्य थी। इसके कारण लोग स्वावलम्बी न होकर केवल ईश्वर के भरोसे बैठे रह कर सात्मोन्नति के सच्चे मार्ग में प्रयत्नशील नहीं थे। मुक्ति-लाभ ईश्वर की कृपा पर ही माना जाता है। कल्याण पथ में विशेष मनोयोग न देकर लोग ईश्वर की लम्बी-लम्दो प्रार्थना करने में ही निमग्न थे और प्रायः इसी में अपने कर्तव्य की इति श्री समझते थे ।
इस विकट परिस्थिति के कारण लोग बहुत अशान्ति भोग रहे थे शूद्रादि तो अत्याचारों से ऊब गये थे। उनकी आत्मा शान्ति प्राप्ति के लिए व्याकुल हो उठी थी । वे शान्ति की शोध में अातुर हो गये थे । भगवान महावीर ने अशान्ति के कारणों पर बहुत मनन कर शान्ति के वास्तविक पथ का गम्भीर अनुशीलन किया। उन्होंने पूर्व परिस्थिति का कायापलट किये बिना बा को मर समझ अपने अनुभूत सिद्धातों द्वारा क्रान्ति मचा दी ।
उन्होंने जगत के बातावरण की कोई चिन्ता न करके साहब के साथ अपने सिद्धान्तों का प्रचार किया। उनके द्वारा fare को एक नया प्रकाश मिला। महावीर के प्रति जनता का आकर्षण क्रमशः बढ़ता चला गया। फलतः लाखों व्यक्ति वीर-शासन की पवित्र छत्र-छाया में सान्ति-लाभ करने लगे।
वीर शासन की विशेषतायें
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वीर शासन की सबसे बड़ी विशेषता "विश्व प्रेम" है इस भावना द्वारा पहिला को धर्म में प्रधान स्थान मिला। सब प्राणियों को धार्मिक अधिकार एक समान दिये गये । पापी से पापी और शूद्र एवं स्त्री जाति को मुक्ति तक का अधिकार घोषित किया गया और कहा गया कि मोक्ष का द्वार सबके लिए खुला है। धर्म पवित्र वस्तु है उसका जो पालन करेगा, वह जाति अथवा कर्म से चाहे कितना ही नीच क्यों न हो। प्रवश्य पवित्र हो जाएगा। साथ ही जातिवाद का जोर से खण्डन किया गया घोर उभ्यता और नीचता के सम्बन्ध में जाति के बदले गुणों को प्रधान स्थान दिया गया। सा ब्राह्मण कोन है इसकी विशद व्याख्या की गई जिसकी कुछ रूम रेखा देनों के उत्तराध्ययन सूत्र" एवं बौद्धों के "धम्मपद" में पाई जाती है। लोगों को यह सिद्धान्त बहुत संगत और सत्य प्रतीत हुआ। फलतः लोक-समूह महावीर के उपदेशों को श्रवण करने के लिए उमड़ पड़ा। उन्होंने अपना वास्तविक व्यक्तित्व प्राप्त किया, वीर शासन के दिव्य प्रालोक से चिरकालोन अज्ञानमय भ्रान्त धारणा विलीन हो गई । विश्व ने एक नई शिक्षा प्राप्त की, जिसके कारण हजारों शूद्रों एवं लाखों स्त्रियों ने बारमोद्धार किया। एक सदाचारी शूद्र निगु ब्राह्मण से लाख गुणा उच्च है। अर्थात् उच्च नीच का माप जाति से न होकर गुण सापेक्ष है। कहा भी है।
"गुणाः पूजास्थानं गुणिषु न च लिंग न च वयः " धार्मिक अधिकारों में जिस प्रकार सब प्राणी समान अधिकारी हैं, उसी
प्रकार प्राणि मात्र सुखाकांक्षी है। सब जीने के हैं, मरण से सबको भय एवं कष्ट है, अतएव प्राणिमात्र पर दया रखना वीर शासन का मुख्य सिद्धान्त है। इसके द्वारा यज्ञयागादि में असंख्य मूक पशुओं का जो आये दिन संहार हुआ करता था, वह सर्वथा रुक गया। लोगों ने इस सिद्धान्त की सच्चाई का अनुभव किया कि जिस प्रकार हमें कोई मारने को कहता है तो हमें उस कपन मात्र से रुष्ट होता है उसी प्रकार हम किसी को सतायेंगे तो उसे वन्य कष्ट होगा। पर-पीड़न में कभी धर्म हो ही नहीं सकता मूक पशु चाहे मुख से अपना दुःख व्यक्त न कर सकें पर उनकी चेष्टाओं द्वारा यह भली-भांति ज्ञात होता है कि मारने पर उन्हें भी हमारी भांति कष्ट प्रवश्य होता है । इस निर्मल दयामय उपदेश का जन साधारण पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और ब्राह्मणों के लाख विरोध करने पर भी यज्ञयागादि की हिंसा प्रायः समाप्त हो गई। इस सिद्धान्त से अन्तत जीवों का रक्षण हुआ पौर असंख्य व्यक्तियों का पाप से बचाव हुआ । असंख्य मूक एवं निरपराध प्राणियों को अभयदान मिला ।
अहिंसा की व्याख्या वीर शासन में जिस विद रूप से पाई जाती है, किसी भी दर्शन में बसी उपलब्ध नहीं विश्व शान्ति के लिए इसकी कितनी आवश्यकता है, यह भगवान महावीर ने भली-भांति कर दिखाया कठोर से कठोर हृदय भी कोमल हो गये और विश्व-प्रेम की अखण्ड धारा चारों ओर प्रवाहित हो चली।
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