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दिगम्बर मुनि अपने इस प्रयास में सफल हुये थे, क्योंकि यह पता चलता है कि इस्लाम मजहब की स्थापना के समय अधिकांश जैनी अरब छोड़कर दक्षिण भारत में ग्रा बसे थे' तथा हुएन सांग के कथन से स्पष्ट है कि ईस्वी सातवीं शताब्दि तक दिग म्दर मुनिगण अफगानिस्तान में अपने धर्म का प्रचार करते रहे थे।"
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दिगम्बर मुनियों के धर्मोपदेश का प्रभाव इस्लाम मजहब पर बहुत कुछ प्रतीत होता है। दिगम्बर के सिद्धान्त का इस्लाम मजहब में मान्य होना इस बात का सबूत है परवी कवि और तत्ववेता अबु-तु मला (Bbal Aia ई० १७३१०१०) की रचनाओं में जनत्व को काफी मिलती है। अमला शाकभोजी तो थे ही परन्तु वह म० गान्धी की तरह यह भी मानते थे कि एक अहिंसक को दूध नहीं पीना चाहिए। मधु का भी उन्होंने जैनों की तरह निषेध किया था । अहिंसा धर्म को पालने के लिए अबुल श्रला ने चमड़े के जूतों का पहनना भी बुरा समझा था और नग्न रहना वह बहुत अच्छा समझते थे। भारतीय साम्रों का अन्त समय यम्भिचिता पर बैठ कर शरीर को भस्म करते देखकर वह बड़े आश्चर्य में पड़ गये थे । इन सब बातों से यह स्पष्ट है कि अबु-अला पर दिगम्बर जैन धर्म का काफी प्रभाव पड़ा था और उसने दिगम्बर मुनियों को यह अवश्य ही दिगंबर मुनियों के संसर्ग में माये
प्रतीत होते हैं उनका अधिक समय बगदाद में व्यतीत हुआ था।
का (Ceylon) में जैन धर्म की गति प्राचीन काल से है। ईस्वी पूर्व चौथी गताब्दि में सिंहलनरेश पाटुका भय ने वहां के राजनगर धनुरुद्धपुर में एक जैन मन्दिर और जैन मठ बनवाया था। निर्व्रन्थ साधु वहां पर निर्वाध धर्म प्रचार करते थे। इक्कीस राजाओं के राज्य तक वह जैग बिहार और मठ वहां मौजूद रहे थे, किन्तु ई० पू० १८ में राजा बटुमिनीने उनको नष्ट करा कर उनके स्थान पर बौद्ध बिहार बनवाया था। उस पर भी दिगम्बर मुनियों ने जैन धर्म के प्राचीन केन्द्र लंका या सिंहलद्वीप को बिल्कुल ही नहीं छोड़ दिया था। मध्यकाल में मुनि यश-कीर्ति इतने प्रभावशाली हुये थे कि तत्कामीन सिंह नरेश ने उनके पाद-पयों की वर्षा की थी।*
सारांशतः यह प्रकट है कि दिगंबर मुनियों का बिहार विदेशों में भी हुआ था मारतेतर जनता का भी उन्होंने
कल्याण किया था ।
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मुसलमानी बादशाहत में दिगम्बर मुनि
HO son, the kingdom of India is full of different religions..... It is incumbent of thee to wipe all religious prejudices off the tablet of thy beart; administer Justice according to the ways of every religion. -Badar
मुसलमान और हिन्दुओं का पारस्परिक सम्बन्ध
ई० वी १० वीं शताब्दि से अरव के मुसलमानों ने भारतवर्ष पर आक्रमण करना प्रारम्भ कर दिया था किन्तु कई शताब्दियों तक उनके पैर यहाँ पर नहीं जमे थे। वह लूट-मार करके जो मिला उसे लेकर अपने देश को सोट जाते थे। इन प्रारंभिक आक्रमणों में भारत के स्त्री-पुरुषों को एक बड़ी संख्या में हत्या हुई थी और उनके वर्ग मन्दिर र मूर्तियां भी खूब सोड़ी गई थीं। तिमूरलंग ने जिस रोज दिल्ली पत को उस रोज उसने एक लाख भारतीय कैदियों को तोप दम करवा दिया
Ar., Ix. $48
३. जै६०, पृ० ४१६ ५. जैसि सं० ११२
२. हुभा०, पृ०
४. महावंश AISJ p. 37
s. QJMS., Vol. XVIII p. 116
७. Flliot III. p. 436 100000 in fidels, impious idolators were on that day slain."
-Malfuzat-i-Timuri.
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