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Buddhistic missionaries and Jaina monks went forth to Greece and Rome and to places as far as Norway and had spread their culture
-Prof. M.S. Ramaswamy ]yengar जैन पुराणों के कथन से स्पष्ट है कि तीथंकरों और श्रमणों का विहार समस्त प्रार्य खंड में हुआ था। बर्तमान की जानी हुई दुनिया का समावेश ग्रायखंड में हो जाता है। इसलिये यह मानना ठीक है कि अमरीका, यूरोप, ऐशिया आदि देशों में एक समय दिगम्बर धर्म प्रचलित था और वहां दिगम्बर-मनियों का विहार होता था। अाधुनिक विद्वान् भी इस बात को प्रकट करते हैं कि बौद्ध और जैनभिक्षुगण यूनान, रोम और नारवे तक धर्म प्रचार करते हुए पहुंचे थे !
किन्तु जैनपुराणों के वर्णन पर विशेष ध्यान न देकर यदि ऐतिहासिक प्रमाणों पर ध्यान दिया जाय, तो भी यह प्रगट होता है कि दिगम्बर मनि विदेशों में अपने धर्म का प्रचार करने को पहुंचे थे। भ. महाबीर के विषय में कहा गया है कि वे आकनीय, वकार्थप, वाल्हीक, यवनश्रुति, गांधार क्वाधातोय, ताणं और कार्ण देशों में भी धर्म-प्रचार करते हुए पहुंचे थे। ये देश भारतवर्ष के बाहर ही प्रगट होते हैं। प्राकनीय संभवतः श्राकसीनिया (Oxiana) है। यवनश्रुति युनान अथवा पारस्य का द्योतक है। वाल्हीक बल्ख (Bulkh) है। गांधार बंधार है। क्वाथातोप रेड-सी (Red Sea) के निकट के देश हो सकते हैं । ताण-कार्ण तूरान आदि प्रतीत होते हैं। इस दशा में कंधार, यूनान, मिश्र आदि देशों में भगवान का बिहार हुग्रा मानना ठीक है।'
सिकन्दर महान के साथ दिगम्बर मुनि कल्याण मान के लिए यहां से प्रस्थानित हो गये थे और एक अन्य दिगम्बराचार्य यूनान धर्म प्रचारार्थ गरे थे, यह पहले लिखा जा चुका है। यूनानी लेखकों के कथन से वैक्दिया (Bactria) और इथ्यू पिया (Ethiopia) नामक देशों में श्रमणों के विहार का पता चलता है। ये श्रमणगण दि० जैन ही थे, क्योंकि बौद्ध श्रमण तो सम्राट अशोक के उपरान्त विदेशों में पहुंचे थे।
प्रफोका के मिथ और अबीसिनिया देशों में भी एक समय दिगम्बर मनियों का विहार हया प्रगट होता है। क्योंकि वहां की प्राचीन मान्यता में दिगम्बरत्व को विशेष आदर चला प्रमाणित है। मिश्र में नग्न मूर्तियां भी बनी थीं और वहां की कुमारी संटमेरी (St. Mary) दिगम्बर साध के भेष में रहो थी। मालूम होता है कि रावण को लंका अफ्रीका के निकट ही था ओर जैन-पुराणों से यह प्रगट ही है कि वहां अनेक जैन मन्दिर और दिगंबर मुनि थे।
यूनान में दिगम्बर मुनियों के प्रचार का प्रभाव काफी हा प्रगट होता है। वहां के लोगों में जन मान्यताओं का प्रादर हो गया था। यहां तक कि डायजिसेन (Diogenes) ओर सम्भवतः परहो (Pyrroh of Elis) नामक यूनानी तत्व वेता दिगंबर वेप में रहे थे। परहो ने दिगंबर मनियों के निकट शिक्षा ग्रहण की थी। यूनानियों ने नग्न मतियां भी बनायों थी; जैसे कि लिखा जा चुका है।
जय यूनान और नारवे जैसे दूर के देशों में दिगवर मुनिगण पहुंचे थे, तो भला मध्य एशिया के अरव ईरान और अफगास्नितान प्रादि देशों में वे क्यों न पहुंचते ? सनमुच दिगंबर मुनियों का बिहार इन देनों में एक समय में हुआ था। मौर्य सम्राट् सम्प्रति ने इन देशों में जैन श्रमणों का विहार कराया था, यह पहले ही लिखा जा चुका है । मालूम होता है कि
१. Tte "Hindu of 25th July 1919 & JG. XV 27 २. भपा०, १५६-- १५७ ३. हरिवंशपुराण, सर्ग ३ श्लो०३-५ ४. वीर, वर्ष अंक ५. संजैइ०, भा २ पृ० १०२-१०३ ६. A]. p. 104 ७. AR., 13.p6. व जैन होस्टल मैगजीन भाग ११०६ ८. भाषा०, पृ० १६०-२६२
E. NJ., Intro p. 2 and "Diogenes Laertius (17.61 and 63 ) refers to the Gymnosophists and asserts that Pyrrho of Elis, the founder of pure Scepticism came under their influence and on his return the Elis imitated their habits of life "E.B.XJI 753
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