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यादीन्द्र अभयदेव शक सं० १३२० (नं० १०५) के शिलालेख में भी अनेक दिगम्बराचार्यों की कीति गाथा का बखान है। बादीन्द्र अभयदेवसूरि ने बौद्धादि परवादियों को प्रतिभाहीन बना दिया था। यही शत प्राचार्य चारुकीति के विषय में कही
होयसाल वंश के राजगुरु दि० मुनि शक सं०१२०५ (नं० १२६) में होयसाल वंश के राजगुरु महामण्डलाचार्य माघनंदि का उल्लेख है। जिनके शिष्य बेल्गोल के जौहरी थे ।
योगी दिवाकरनन्दि नं० १३६ के शिलालेख में योगी दिवाकरनन्दि तथा उनके शिष्यों का वर्णन है। एक गन्ती नामक भद्र महिला ने उनसे दीक्षा लेकर समाधिमरण किया था।
एक सौ पाठ वर्ष तप करने वाले वि० मुनि नं. १५६ शिलालेख प्रगट करता है कि कालन्तुर के एक मुनिराज ने कटवा पर्वत पर एक सो पाठ वर्ष तक तप करके समाधिमरण किया था
गर्ज यह है कि श्रवण बेलगोल के प्रायः सब ही शिला लेख दिगम्बर मुनियों की कोत्ति और यशको प्रगट करते हैं। राजा और रंक सब ही का उन्होंने उपकार किया था। रणक्षेत्र में पहुंच कर उन्होंने वीरों की सन्मार्ग सुझाया था। राजा-रानी, स्त्री-पुरुष, सब ही उनके भक्त थे।
दक्षिण भारत के अन्य शिलालेखों में दिग० मुनि श्रवण बेलगोल के अतिरिक्त दक्षिण भारत के अन्य स्थानों से भी अनेक शिलालेख मिले हैं, जिनसे दिगम्बर मनियों का गौरव प्रकट होता है। उनमें से कुछ का संग्रह प्रो. शेषगिरिराव ने प्रकट किया है। जिससे विदित होता है कि दिगम्बर मुनि इन शिला लेखों में यम-नियम-स्वाध्याय-ध्यानधारण-मौनानुष्टान-जप-समाधि-शीलगुण-सम्पन्न लिखे गये हैं। उनका यह विशेषण उन्हें एक सिद्ध-योगी प्रगट करता है। प्रो० सा० उनके विषय में लिखते हैं कि
"From these epigraphs we learn some details about the great ascetics and acharayas who spread the gospel of Jainism in the Andhra-Karnata desa. They were not only the leaders of lay and ascetic disciples, but of Royal dynasties of warrior clans that held the destinies of the peoples of these lands in their hands."
भावार्थ-"उक्त शिलालेख-संग्रह से उन महान दिगम्बर मुनियों और प्राचार्यों का परिचय मिलता है, जिन्होंने आन्ध्र-कर्णाटक देश में जैन धर्म का संदेश विस्तुत किया था। वे मात्र धावक और साधु शिष्यों के ही नेता नहीं थे, बल्कि उन क्षत्रिय कूलों के राजवंशों के नेता थे कि जिनके हाथों में उन देशों की प्रजा के भाग्य की बागडोर थी।"
दिगम्बरचार्यों का महत्वपूर्ण कार्य सचमुच दिगम्बर मुनियों ने बड़े २ राज्यों की स्थापना और उनके संचालन में गहरा भाग लिया था। पुलल (मद्रास) के पुरातत्त्व से प्रगट है कि एक दिगम्बराचार्य ने असभ्य कुटुम्बों को जैन धर्म में दीक्षित करके सभ्य शासक बना दिया था वे जैन धर्म के महान रक्षक थे और उन्होंने धर्म लगन से प्रेरित होकर बड़ी-बड़ो लड़ाइयां लड़ी थी। उनने ही क्या, बल्कि दिगम्बराचार्यों के अनेक राजवंशी शिष्यों ने धर्म संग्राम में अपना भुज-विक्रम प्रगट किया था। जैन शिलालेख उनकी रण
१. जैशिसं०, पृ० १९८-२०७ २. Ibid p253 ४. lbid p 308 ६. Ibid. p.68
3. Ibid p 289 ५. SSIJ. pt.l] p.6 ७. OII.p. 236