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जैमिनि, लोकायत आदि विपक्षी मतों को हीनप्रभ बना दिया था। वह परमतप के निधान, प्राणीमात्र के हितैषी और जैन शासन के सकल कलापूर्ण चन्द्रमा थे । होयसलनरेश एरेयंग उनके शिष्य थे, जिन्होंने कई ग्राम उन्हें भेंट किये थे।
धारानरेश पूलित प्रभाचन्द्र इसी शिला लेख में मुनि प्रभाचन्द्र जी के विषय में लिखा है कि वे एक सफल वादी थे और धारानरेश भोज ने अपना शीश उनके पवित्र चरणों में रक्खा था।
श्री दामनन्दि श्री दामनन्दिमुनि को भी इस शिला लेख में एक महावादी प्रगट किया गया है, जिन्होंने बौद्ध, नैयायिक और वैष्णवों को शास्त्रार्थ में परास्त किया था। महावादी 'विष्णु-भट्ट' को परास्त करने के कारण वे 'महावादि विष्णु भट्टघरट्ट' कहे गये हैं।
श्री जिनचन्द्र श्री जिनचन्द्र मुनि को यह शिलालेख व्याकरण में पूज्यपाद, तक में भट्टाकलंक और साहित्य में भारवि बतलाताहै ।
शुभाश-पूजित श्री वासवचन्द्र श्री वासवचन्द्र मुनिने चालूक्य नरेश के कटक में 'बाल-सरस्वती की उपाधि प्राप्त की थी, यह भी इस शिलालेख से प्रगट है । स्याद्वाद और तक शास्त्र में यह प्रवीण थे।
सिंहल नरेश द्वारा सम्मानित यःकोत्ति मुनि श्री यश:कीति मनि को उक्त मिला लेख सार्थक नाम बताता है। व विशाल कीर्ति को लिये हुये स्थाद्वाद-सूर्य ही थे। बौद्धादि वादियों को उन्होंने परास्त किया था। तथा सिहल-नरेश ने उनके पूज्यपादों का पूजन किया था ।
श्री कल्याण कोत्ति थी कल्याण कीर्ति मुनि को उक्त शिलालेख जीवों के लिये कल्याण कारक प्रगट करता है । वह शाकनी प्रादि वाधानों को दूर करने में प्रवीण थे।
श्री त्रिमुष्टि मनीन्द्र बड़े सैद्धान्तिक बताये गये हैं। वे तीन मुट्ठी अन्न का ही प्रहार करते थे। सारांश यह कि उक्त शिलालेख दिगम्बर मुनियों की गौरव-गाथा को जानने के लिये एक अच्छा साधन है ।
१. जैशिसं०, पृ० ११७ 'परमतयो निधान, वसुधैककुटुम्बजनशासनाम्बर-परिपूर्णचन्द्र-सकलागम --तत्त्व-पदार्थ-शास्त्र-विस्तर-वचनाभिराम गुण-रत्नविभूषण गोपणन्दिः ।।
२. जैशिसं० पू० ३६५ ३. जैशिसं० १० ११८ ४. "बौद्रोर्वीधर-शम्बः नव्यायिक-कज-कुश-विधु-बिम्मः । श्री दामनन्दिविबुधः क्षुद्र-पहावादि-विष्णुभट्ट रट्ट ।।१६।।
-जंशिसं०, पृ० ११८ ५. जैनन्द्र पूज्य (पादः) सवालसमयलयके व भट्टाकलंकः ।
साहित्ये भारविस्स्थाकवि-गमक-महावाद-वाग्नित्व-रुन्द्रः । गीते वाद्य च नत्ये दिशि विदिशि च संवति सत्त्रीति मूर्तिः ।
स्थेयाश्छयोगिवृन्दाचितपद जिनचन्द्रो विचन्द्रोमुनीन्द्रः ।। ६. जैशिम पृ० ११६-"चालुक्य-कटक-मध्ये बाल-सरस्वतिरिति प्रसिद्धि प्राप्त: ।" २. "श्रीमान्यशः कीति-विशालकोति स्स्याद्वाद तकब्जि-विबोधनार्कः ।
बौदादि-वादि-द्विप-कुम्भ-भेदी श्री सिंहलाधीश-कृताध्य पाथः ।।२६।।" ८. कल्याणकीति नामाभूभव्य-कल्याण कारफः ।
शाकिन्यादि-प्रहारपांच निर्धाटन-दुदरः -जंशिरा, पृ० १२१ २. "गुष्टि त्रय-अमिताशन-तुष्टः शिष्ट-प्रिय स्त्रिमुष्टि मुनीन्द्रः ।"
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