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से इस विषय में डा. स्टीवेन्सन लिखते हैं।
"(एक तीर्थक नग्न हो गया) लोग उसके लिए बहुत से वस्त्र लाये, किन्तु उनको उसने स्वीकार नहीं किया। उसने यही सोचा कि, यदि मैं वस्त्र स्वोकार करता है तो संसार में मेरी अधिक प्रतिष्ठा नहीं होगी। वह कहने लगा कि लज्जा रक्षण के लिए ही वस्त्र धारण किया जाता है और लज्जा हो पाप का कारण है, हम अहत् हैं, इसलिए विपथ वासना से अलिप्त होने के कारण हमें लज्जा की कुछ भी परवाह नहीं ।" इसका यह कथन सुनकर बड़ी प्रसन्नता से वहां इसके पाँच सो शिष्य बन गए, बल्कि जम्बू द्वीप में इसी को लोग सच्चा बुद्ध कहने लगे।"
यह उल्लेख सम्भवतः मक्खलि गोशाल अथवा पूर्ण काश्यप के सम्बन्ध में है। ये दोनों साथ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा के मनि थे ।मक्खलि गोशाल भगवान महावीर से रुष्ट होकर अलग धर्म प्रचार करने लगा था और वह ग्राजीबिक" संप्रदाय का नेता बन गया था। इस सम्प्रदाय का विकास प्राचीन जैन धर्म से हया था और इसके साथ भी नग्न रहते थे। पुरण-काश्यप गोशाल का साथी और वह भी दिगम्बर रहा था। सचमुच दिगम्बर जैनधर्म पहले से ही चला आ रहा था, जिसका प्रभाव इन लोगों पर पड़ा था।
उस पर भगवान महावीर के अवतीर्ण होते हो दिगम्बरत्व का महत्व मीर भी बढ़ गया। यहां तक कि दसरी सम्प्रदायों के लोग भी नग्न वेष धारण करने को लालायित हो गये, जैसे कि ऊपर प्रकट किया गया है।
बौद्ध शास्त्रों में निग्रन्थ (दिगम्बर) महामुनि महावीर के बिहार का उल्लेख भी मिलता है। "मज्झिम निकाय" के "अभय राजकुमार सुत्त" से प्रकट है कि वे राजगृह में एक समय रहे थे। "उपालीसुत्त" से भगवान महावीर का नालन्दा में विहार करना स्पष्ट है । उस समय उनके साथ एक बड़ी संख्या में निर्गन्ध साधु थे। सामगामसुत्त से यह प्रगट है कि भगवान ने पावा से मोक्ष प्राप्त की थी। दीर्घनिकाय का पासादिक सुत्त भी इसी बात का समर्थन करता है। संयुत्तनिकाय से भगवान प्रवासीर का संघ सहित “मच्छिका खण्ड" में बिहार करना स्पष्ट है।' 'ब्रह्मजालमृत्त' में राजगृह के राजा अजातशत्र को जवान महावीर के दर्शन के लिए गया लिखा है।" "विनयपिटक' के 'महावग' ग्रन्थ से महावीर स्वामी का वैशाली में धर्म
रना प्रमाणित है। एक 'जातक' में भगवान महावीर को 'अचेलक नातपुत' कहा गया है। महावस्तु से प्रकट है कि अवन्ती के राजपुरोहित का पुत्र नालक बनारस आया था। वहां उसने निर्ग्रथनाथ पुत्त (महावीर) को धर्म प्रचार करते पाया दीर्घ निकाय से यह स्पष्ट है कि कौशल के राजा पसनदी ने निर्गन्थ नातपुत्त (महावीर) को नमस्कर किया
books. it may be seen that this rival (Mahavira) was a dangerous and influential one and that even in Buddha's tinc his teaching had sprcnd considerably... Also they say in their description of other rivals of Buddha that these, in order to gain estccm, copied the nirgranthas and went unclothed, or that they were looked upon by the people as Nirgrantha holy ones, because they happened to lost their clothes."-AISJ. P. 36
जेसिभा, ११२-३ । २४ "The people bought clothes in abundance for him, but he (Kassana) refused them as he thought that if he put them on, he would not be treated with the same respect. Kassapa said, "Clothes are the covering of shame and the shame is the effect of sin. I am an Arabat, As I am free from evil desires, I know no shame." etc -BS. PP. 74-75 २. भमबु. पृ०१७-२१
३. वीर, वर्ष ३ पृ० ३१२ व भसत्रु० पृ० १७-२१ ४. 'आजीविको ति नग्ग-समण को।'-'पपजच-सूदनी १।२०६-]HQ., I]I, 248. ५. मज्झिम (P. T. S.) भा१ पु० ३६२-भमजु० पृ० १६१
६. मविभम १२७१ व "The M. N. tells us that once Nigantha Natlhaputta was al Nalanda with a big retinue of thc Niganthas."-AIT.P, 147 ७. मनिझम० १।६३–भमषु० २०२।।
८. दीच, III 117-118,–भमधु० पृ० २१४ ६. संपुत्ता ४।२८७-भमबु० पृ० २१६
१०. भमवु, पृ० २२२ ११. महाबग ६।३१।११-भमबु० पृ० २३ ए-२२६
१२. जातक २।१८२ १३. ASM. p. 159
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