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था 1' उन्होंने स्पष्ट घोषित किया था कि जैन धर्म में दिगम्बर साथ ही निर्वाण प्राप्त कर सकता है। बिना दिगम्बर वेष धारण किये निर्वाण प्राप्त कर लेना असम्भव है । और उनके इस वैज्ञानिक उपदेश का आदर पाबाल-वृद्ध-वनिता ने किया था।
विदेह में जिस समय भगवान महावीर पहुंचे तो उनका वहां लोगों ने विशेष आदर किया। वैशालो में उनके शिष्यों की संख्या अधिक थी। स्वयं राजा चेटक उनका शिष्य था। अंगदेश में जब भगवान पहुंचे तो वहां के राजा कुणिक अजात शन के साथ सारी प्रजा भगवान की पूजा करने के लिए उमड़ पड़ी। राजा बुणिका कौशाम्बी तक महावीर स्वामी को पहुंचाने गए। कोशाम्बी नरेश ऐसे प्रतिबुद्ध हुए कि वह दिगम्बर मुनि हो गए। मगध देश में भी भगवान् महाबोर का खूब विहार हा था और उनका अधिक समय राजगृह में व्यतीत हुआ था। सम्राट श्रेणिक विम्बसार भगवान् के अनन्य भक्त थे और उन्होंने धर्म प्रभावना के अनेक कार्य किये थे। श्रेणिक के अभयकुमार, वारिषेण आदि कई पुत्र दिगम्बर मुनि हो गये थे। दक्षिण भारत में जब भगवान का विहार हुआ तो हेमांग देश के राजा जीवंधर दिगम्बर मुनि हो गये थे। इस प्रकार भगवान का जहां-जहां बिहार हुआ वहां-वहां दिगम्बर धर्म का प्रचार हो गया । शतानीक, उदयन, प्रादि राजा, अभय, नंदिषेण आदि राजकुमार शालिभद्र, धन्यकुमार, प्रीतंकर आदि धनकुबेर, इन्द्रभूति, गौतम आदि ब्राह्मण विद्वान, विधुच्चर आदि सदृश पतितात्मायेंपरे न जाने कौन-कौन भगवान् महावीर को शरण में।ाकर मनि हो गये।
सचमन अनेक धर्म-पिपासु भगवान् के निकट पाकर धर्मामृत पान करते थे। यहां तक कि स्त्रय म० गौतमबद्ध और उनके संघ पर भगवान के उपदेश का प्रभाव पड़ा था । बौद्ध भिक्षुओं ने भी नग्नता धारण करने का आग्रह म० बुद्ध से किया था। इस पर यद्यपि म० बुद्ध ने नग्न वेष को बुरा नहीं बतलाया, किन्तु उससे कुछ ज्यादा शिष्य पाने का लाभ न देखकर उसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया। पर तो भी एक समय नेपाल के तांत्रिक बौद्धों में नग्न साधुनों का अस्तित्व हो गया था। सत्र बात तो यह है कि नन्नवेप को साधु पद के भूषण रूप में सब ही को स्वीकार करना पड़ता है। उसका विरोध करना प्रक्रित को कोसना है। उस पर भगवान बुद्ध के जमाने में तो उसका विशेष प्रचार था। अभी भगवान महावीर ने धर्मोपदेश देना प्रराम्भ नहीं किया था कि प्राचीन जैन और प्राजीविक प्रादि साधु नंगे घूमकर उसका प्रचार कर रहे थे। देखिये बौद्ध ग्रन्थों के आधार
१. भमवृ० ५४.८० व ठाणा, पृ० ८१३ २. भमवुन, ६५-६६ ३ . भमबु०, पृ० १०२-११०।।
४. 'महाबग (२८-१) में है कि "एक बौद्ध भिक्ष ने म० बुद्ध के पास नंगे हो आकर कहा कि भगवान ने मंयमी पुरुष की बहुत प्रशंसा की है जिसने पापों को धो डाला है और कषायों को जीत लिया है तथा जो दयानु, बिनयी और साहसी है। भगवान ! यह नग्नता प्रकार से संथम और संतोष को उत्पन्न करने में कारणभूत है-इससे पाप मिटता, कषाय दबते, दयाभाच बढ़ता तया विनय और उत्साह पाता है। प्रभो! यह अच्छा हो यदि आप भी मग्न रहने की आज्ञा दें।" बुद्ध ने उत्तर में कहा कि "भिक्षुओं के लिए यह उचित न होगी- एक श्रमण लिए यह अयोग्य है । इसलिए इसका पालन नहीं करना चाहिए। हे मूर्ख ! तिथियों की तरह तू भी नग्न कसे होगा' हे मूर्व, इससे नये लोग भी दीक्षित न होंगे।"
५. नेपाल में गुद और तान्त्रिक नाम की एक बीतू धर्म की शाला है । मि० हारसन ने लिखा है कि, इस शाखा में नग्न यति रहा करते हैं ।'—जसिभा०, १।२-३। पृ. २५
६. जेम्स एल्बी, पोर जैकोबी तथा डान बुल्हर गी बान का समर्थन करते हैं कि दिगम्वरत्व म. बुद्ध के पहले से प्रचलित था पौर आजीविक आदि तीर्थकों पर जैन धर्म का प्रभाव पड़ा था; यथा
"In lames d' Alwis paper (Ind. Anti VIII) on the Six. Tirthakas the "Digambaras' appear to have been regarded as an old order of ascetics and all of these heretical teachers' betray the influence of Jainism in their doctrines." JA, IX, 161.
Prof. Jacobi remarks: "The preceding four Tirthakas (Makkhali Goshal etc.) appear all to have adopted some or other doctrines or practices, which macks part of the Jaina system, probably froin the Jains themselves. It appears form the preceding remarks that Jaina ideas and practices must have been current at the time of Mahavira and independently of him. This combined with other arguments, leads us to the opinion that the Nirgranthas were realy in existence long before Mahavira.
–(IA. IX, 161) prof. T. W. Rhys Davids notes in the "Vinaya Texts" that "thc Sect now called Jaias are divided into classes, Digambara, Swetambara, the latter of which eat naked. They are Known to be the successors of the school called Niganthias in the Pali Pitakas...,SBE.XIII, 41
Dr. Buhler writes, From Buddhist accounts in their canonical works as well as in other