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को त्याग कर दिगम्बर मुनि हुए थे। भारत के प्रथम सम्राट भरत, जिनके नाम से यह देश भारतवर्ष कहलाता है, दिगम्बर मुनि हए थे। उनके भाई श्री बाहुबलिजी अपनी तपस्या के लिए प्रसिद्ध हैं। तपस्वी रूप में उनको महान् मूर्ति प्राज भी श्रवण वेलगोल में दर्शनीय बस्तु है। उनकी उस महाकाय नग्नमुति के दर्शन करके स्त्री पुरुष, बालक वृद्ध भारतीय तथा विदेशी अपने को सौभाग्यशाली समझते हैं। रामचन्द्रजी, सुग्रीव, युधिष्ठिर आदि अनेक दिगम्बर मुनि इस काल में हुए हैं, जिनके भव्य चरित्रों मे जैन शास्त्र भरे हुए हैं। सारांशन: गतकाल में भारत में दिगम्ब रत्व अपनी अपूर्व छटा दर्शा चुका है।
भगवान महावीर और उनके समकालीन दिगम्बर मुनि 'निगण्ठो. पावूसो नाथपुत्तो सव्वज, सव्वदस्सावी अपरिसेसं ज्ञाण दस्सन परिजानातिः ।
-मम्झिमनिकाय। निगण्ठो नातपत्तो संघी चेव गणी च गणाचार्यों च ज्ञातो यसस्सी तित्थकरो साधु सम्मतो बहुजनस्य रत्तस्सू चिर पव्व जितो मद्धगतो क्यो अनुप्पत्ता।
-दीघनिकाय । भगवान महावीर वर्द्धमान ज्ञातृवंश क्षत्रियों के प्रमुख राजा सिद्धार्थ और रानी प्रियकारिणी त्रिशला के सुपुत्र थे। रानी त्रिशला वज्जियन राष्ट्रसंघ के प्रमुख लिच्छवि अग्रणी राजा चेटक की सुपुत्री थीं। लिच्छवि क्षत्रियों का आवास समद्धिवाली नगरी वैशाली में था । ज्ञातक क्षत्रियों की बसती भी उसी के निकट थी। कुण्डग्राम और कोल्लगसन्निवेश उनके प्रसिद्ध नगर थे । भगवान् महावीर वर्द्धमान् का जन्म कुण्डग्राम में हुअा था और वह अपने ज्ञातृवंत के कारण "ज्ञातपूध" के नाम से भी प्रसिदथे । बौद्ध ग्रन्थों में उनका उल्लेख इसी नाम से हमा मिलता है और वहां उन्हें भगवान गौतम बुद्ध के समकालीन बताया गया है। दूसरे शब्दों में कहें तो भगवान महावीर आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले इस धरातल को पवित्र करते थे और वह क्षत्री राजपुत्र थे।
भरी जवानी में ही महाबीर जी ने राजपाट का मोह त्याग कर दिगम्बर मुनि का वेष धारण किया था और तीस वर्ष तक कठिन तपस्या करके वह सर्वज्ञ और सर्वदर्शी तीर्थकर हो गये थे। मज्झिमनिकाय नामक बौद्ध ग्रन्थ में उन्हें सर्वज्ञ. सर्वदर्शी और अशेष ज्ञान तथा दर्जन का ज्ञाता लिखा है। तीर्थंकर महावीर ने सर्वज्ञ होकर देश-विदेश में भ्रमण किया था और उनके धर्म प्रचार लोगों का प्रात्मकल्याण हुआ था। उनका बिहार संघसहित होता था और उनकी बिनय हर कोई करता धान बौद्ध ग्रन्थ दोनिकाय में लिखा है कि निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र (महाबीर) संघ के नेता हैं, गणाचार्य हैं, दर्शन विशेष के प्रणेता हैं, विशेष विख्यात हैं, तीर्थकर हैं, बहु मनुष्यों द्वारा पूज्य हैं, अनुभवशील हैं, बहुत काल से साधु अवस्था का पालन करते हैं और अधिक वय प्राप्त हैं।"
जैन शास्त्र हरिवंश पुराण में लिखा है कि "भगवान महावीर ने मध्य के (काशी, कोशल, कौशल्य, कसंध्य अश्वत त्रिगपंचाल, भद्रकार, पाटाचार, मौक, मत्स्य, कनीय, सूरसेन एवं बृकार्थक, समुद्र तट के (कलिक, कूरुजांगल, कैकेय, प्राय. कांबोज,, बाल्हीक, यवनश्रुति, सिंधु गांधार, सौवीर, सूर, भीरु, दोरुक, वाडवान, भारद्वाज और कायतोय) और उत्तर दिशा के (ताणं, कार्ण, प्रच्छाल आदि) देशों में विहार कर उन्हें धर्म की ओर ऋजु किया था। भगवान् महावीर का धर्म अहिंसा प्रधान तो था ही, किन्तु उन्होंने साधुओं के लिए दिगम्ब रत्व का भी उपदेश दिया
-...- .-.-.-.- - ----- १. विशेष के लिए हमारा "भगवान महावीर और म. बुद्ध" नामक ग्रन्ध देखो।
. २. मझिग निकाय (P.T.S) भा. १ पु. ६२-६३ . . . .. ३. दीर्घ निकाय (P.T.S) भा० १ पृ०४८-४६, . .. ४. हरिवंशपुराण (कलकत्ता) पृ०१८
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