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था। उसकी रानी मल्लिका ने निर्ग्रन्थों के उपयोग के लिए भवन बनवाया था। सारांशतः बौद्ध शास्त्र भी भगवान महावीर के दिगन्तव्यापी पौर सफल बिहार की साक्षी देते हैं ।
भगवान् के बिहार और धर्म प्रचार से जैन धर्म का विशेष उद्योत हुआ था। जैन शास्त्र कहते हैं कि उनके संघ में चौदह हजार दिगम्बर मुनि थे, जिसमें १६०० साधारण मुनि, ३०० अंगपूर्वधारी मुनि, १३०० अवधिज्ञानधारी मुनि, ६०० ऋद्धिविक्रिया युक्त, र ज्ञान प्रा . शानदानी कार.१० अनुत्तरबादी थे। महावीर संघ के ये दिगम्बर मुनि दश गणों में विभक्त थे और ग्यारह गणधर उनकी देख-रेख रखते थे। इन गणधरों का वर्णन निम्न प्रकार है:
(१) इन्द्रभुति गौतम, (२) वायुभति, (३) अग्निभूति, ये तीनों गणधर मगध देश के गोबर ग्राम निवासी यसुभूति, (शांडिल्य ब्राह्मण की स्त्री पृथ्वी (स्थिण्डिला) और केसरी के गर्भ से जन्मे थे। गृहस्थाश्रम त्यागने के बाद ये क्रम से गौतम गार्य और भार्गब नाम से भी प्रसिद्ध हए थे। जैन होने के पहले ये तीनों वेद धर्म परायण ब्राह्मण विद्वान थे। भ० महावीर के निकट इन तीनों ने अपने कई सौ शिष्यों सहित जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण को और ये दिगम्बर मुनि होकर मुनियों के नेता हुए थे । देश-देशान्तर में विहार करके इन्होंने खूब धर्म प्रभावना की थी।
चौथे गणधर व्यक्त कोल्लग सन्निवेश निवासी धन मित्र ब्राह्मण को वारुणी' नामक पत्नी की कोख से जन्मे थे । दिगम्बर मुनि होकर यह भी गणनायक हुए थे ।
पांचव सुधर्म नामक गणधर भी कोल्लग सन्निवेश के निवासी धम्मिल ब्राह्मण के सुपुत्र थे। इनकी माता का नाम भहिला था। भ० महावीर के उपरान्त इनके द्वारा जैन धर्म का विशेष प्रचार हुया था ।
छठे मण्टिक नामक गणघर मौख्यि देश निवासी धनदेव ब्राह्मण की विजया देवी स्त्री के गर्भ से जन्मे थे। दिगम्बर मुनि होकर यह वीर संघ में सम्मिलित हो गये थे और देश-विदेश में धर्म प्रचार किया था।
सातवें गणधर मौर्य पुत्र भी मौर्यास्य देश के निवासी 'मौर्यक' ब्राह्मण के पुत्र थे । इन्होंने भी भ० महावीर के निकट दिगम्बरीय दीक्षा ग्रहण करके सर्वत्र धर्म प्रचार किया था।
पाठवें गणधर अकम्पन थे, जो मिथिलापूरी निवासी देव नामक ब्राह्मण की जयन्ती नामक स्त्री के उदर से जन्मे थे। इन्होंने भी खूब धर्म प्रचार किया था।
नवें धवल नामक गणधर कोशलापुरी के बसु विप्र के सुपुत्र थे। इनकी मां का नाम नन्दा था। इन्होंने भी दिगम्बर मनि हो सर्वत्र विहार किया था।
दसवें गणधर मैत्रेय थे। वह सत्यदेशस्थ तंगिकास्य नगरी के निवासी दस ब्राह्मण की स्त्री करुणा के गर्भ से जन्मे थे। इन्होंने भी अपने गण के साधुनों सहित धर्म प्रचार किया था।
ग्यारहवें गणधर प्रभास राजगह निवासी बल नामक ब्राह्मण की पत्नी भद्रा की कुक्षि से जन्मे थे। और दिगम्बर मुनि तथा गणनायक होकर सर्वत्र धर्म का उद्योत करते हुए बिचरे थे।
इन गणधरों की अध्यक्षता में रहे उपरोक्त चौदह हजार दिगम्बर मुनियों ने तत्कालीन भारत का महान् उपकार किया था। विद्या, धर्म, ज्ञान और सदाचार उनके सदउद्योग से भारत में खूब फले थे। जैन भीर बौद्ध शास्त्र यही प्रकट करते हैं :
"The Buddhist and Jaina texts tell us that the itincrant teachers of the tinc wandered about in the country, engaging themselves whercever they stopped in serious discussion on matters relating to religion, philosophy, cthics, morals and policy."
१. दीध०७८-७९-IHQ.I,153. २. LWB. P. 109. ३. मम०, ११७ । ५. बृजश०, पृ० ८। ७. बृजेश, पृ०८।
४. वुर्जश०, पृ. ६०-६१ ६. बृजवा०, पृ०६। ८. LWB.p.52