________________
अनेक जैन मान्यतायें तथा पारिभाषिक शब्द मिलते हैं। निग्रन्थ शब्द जो खास जैनों का पारिभाषिक शब्द है, इसमें व्यवहृत लौंच ( शिरोव्रतं विवधद्यस्तु नोर्ण ) दिया है तथा अरिष्ट नेमि का स्मरण भी किया है, जो इससे भी उस काल में दिगम्बर मुनियों का होना प्रमाणित है। व रामायणकाल में भी दिगम्बर मुनियों के अस्तित्व को देखिये। रामायण के बालकाण्ड ( सर्ग १४ श्लोक २२ ) में राजा दशरण धमनों को आहार देते बताये गये हैं तापसा भुञ्जते वापि श्रमणा भुञ्जते तथा ।") और 'अमण' शब्द का 'अर्थ 'भूषण ढोका' में दिगम्बर मुनि किया गया है" जो ठीक है, क्योंकि दिगम्बर मुनि का एक नाम श्रमण भी है । तथापि जंन शास्त्र राजा दशरथ और राम जी शादि की है। शिष्ट में रामचन्द्र जी जिन 'भगवान' के समान होने की इच्छा प्रकट करके अपनी जन भक्ति प्रकट करते हैं । ग्रतः रामायण के उक्त उल्लेख से उस काल में दिगम्बर मुनियों का होना स्पष्ट है ।
हुआ है और उसका विशेषण के जैनियों के वाईस तीयंकर हैं।
६
'महाभारत' में भी 'नग्न क्षपणक' के रूप में दिगम्बर मुनियों का उल्लेख मिलता है, जिससे प्रमाणित है कि "महाभारत काल में भी दिगम्बर जैन मुनि मौजूद थे। जेन शास्त्रानुसार उस समय स्वयं तीर्थंकर अरिष्टनेमि विद्यमान थे।
हिन्दू पुराण ग्रन्थ भी इस विषय में वेदादिग्रन्थों का समर्थन करते हैं प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभ देव जी को श्रीमद्भागवत और विष्णुपुराण दिगम्बर मुनि प्रगट करते हैं, यह हम देख चुके । अब विष्णुपुराण में भी उल्लेख है वह देखिये वहां मैत्रेय पाराशरऋषि से पूछते हैं कि "नग्न किसको कहते हैं? उत्तर में पाराशर कहते हैं कि "जो छेद को न माने वह नग्न है।" अर्थात् वेद विरोधी नंगे साधु "नंग्न" है। इस सम्बन्ध में देव और असुर संग्राम की कथा कहकर किस प्रकार विष्णु के द्वारा जैन धर्म की उत्पत्ति हुई, यह बह कहते हैं । इसमें भी जैन मुनि का स्वरूप दिगम्बर लिखा हैः
"ततो दिगम्बरो मंडो बत्रिधरो द्विजः ।"
देवासुर युद्ध की घटना इतिहासातीत काम की है।
अतः इस उल्लेख से भी उस प्राचीन काल में दिगम्बर मुनि का प्रस्तित्व प्रमाणित होता है तथा यह निर्वाध विहार करते थे, यह भी इससे स्पष्ट है, क्योंकि इसमें कहा गया है कि यह दिगम्बर मुनि नर्मदा तट पर स्थित असुरों के पास पहुंचा और उन्हें निज धर्म में दीक्षित कर लिया । "
पद्मपुराण प्रथम सृष्टि खण्ड १२ ( पृ० ३३) पर जैन धर्म को उत्पत्ति के सम्बन्ध में एक ऐसी ही कथा है, जिसमें विष्णु द्वारा मायामोह रूप दिगम्बर मुनि द्वारा जैन धर्म का निकास हुआ बताया गया है:--
बृहस्पति साहाय्यार्थ विना मायामोह समुत्पाचवम् - दिगम्बरेण मायामोहेन दैत्यान् प्रति जैनधर्मोपदेशः दानवानां
मायामोह मोहितानां गुरुणा दिगंबर जैनधर्म दीक्षा दानम् ।
मायामोह को इसमें योगी दिगम्बरो मुण्डो बर्हिपत्रधरो ह्यं लिखा है। इससे भी उक्त दोनों बातों की पुष्टि होती है । इसी पद्मपुराण में ( भूमिखण्ड ० ६६ )" में राजा वेण की कथा है। इसमें लिखा है कि एक दिगम्बर मुनि ने उस राजा को जैन धर्म में दीक्षित किया था। मुनि का स्वरूप यूं लिखा है:--
"नरूपो महाकायः सितमुण्डो महावनः । मानी शिखिपत्राणां कक्षायां सहिधारयन् ॥ गृहीत्वा पानपात्ररच नारिकेल भयंकरे। पठमानो मरच्छास्त्रं वेदशास्त्र विदूषकम् ॥
१. वीर वर्ष पृ० २५३
२. स्वस्ति नस्ताप अष्टिनेमिः । ईशा ५० १४
३. "श्रममा दिगम्बराः श्रमणा वातसना: । "
५. योगवासिष्ठ अ० १५ श्लो०
६. आदिपर्व अ० ३ श्लो० २६-२०
७. विष्णुपुराण तृतीयांश अ० १७ व १८ - वेजे० पृ० २५ व पुरातत्व ४।१८०
४. पद्मपुराण देखो
८. पुरातत्व ५११७६
१. वे जं० ०१५
१०. R. C. Dutt, Hindu Shastras, pt. TilI pp 213-22 व JG XIV 89
६७६