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________________ वोहा तिनमें गोलापूर्वकी, उतपति कहों बखान । संबोधे श्री आदि जिन, इक्ष्वाक वंश परवान ।।२८४|| चौपाई गोयलगढ़के वासो तेरा, आए श्री जिन आदि जिनेश । चरणकमल प्रनमैं घर शीस, अरु प्रस्तुति कीनी जगदीश ॥२८॥ तब प्रभु कृपावंत अति भये, श्रावक व्रत तिनह को दये । श्रियाचरण की दीनी सीक, आदर सहित गही निजठीक ॥२८६।। पूर्वहि थापी नैत जु, एह अरु गोयलगढ़ थान कहेह । तातै गोलापूरब नाम, भाष्यौ थी जिनवर अभिराम ।।२८७॥ दोहा गोलापूरब भेद त्रय, प्रथम बिसविसे जान। और दश विसे पंचविसे, कहौं बैरु गुन खान ॥२८८।। सवैया इकतीसा। खाग फुसकेले औ चन्देरिया मरैया विप। रहिया बनोनिहा सुटेटवार जानिये । भर्तपुरिया छोरकटे कोटिया दुगेले प्रौ। तिमेले हंडफार बरघरिया बखानिये ।। इन्द्रव महाजन खुरदेले मिलसैया रौते । ले जतहरिया निरमोलक प्रमानिये ।। धौनी पंथवार हरदेले कपासिया रस । गोदर गगौरिया धवलिया जुठानिये ।।२८६।। कारयौड़ सरखड़े साधारन टीका केरावत । बदरोहिया सौनी सौमरा जु लीजिये ।। परि धधौलिया पचलौरे मडोले सन । कुटा हीरापुरिया बेरिया सुन लीजिये। कननपुरिया कनसेनहा पटोरियां बो। दरे राधले सांधेले प्रमानिये। पंचरत्न पचरसे चोंसरा कनकपुरी। घमोनिया ौ दर्गेया गरिहा बखानिये ॥२६०|| दोहा सिरसपुरी अरु कौनिया, अंठाबन बैंक । 'नवल' कहे संक्षेप सौं, निज कुल बरनों नेक ||२६|| चौपाई बैंक चंदेरिया सेरे चार, प्रथमहि बड़ दूजे परधार । खाम तृतीय खेरौ पहिचान, चौथे गेरू चोरा जान ॥२२॥ बढ़ चंदेरिया प्रथम वखान, गोत्र प्रजापति तिनहि बखान । चतुरथ काल प्रादि ही मान, गोल्हन शाहु चंदेरी थान ॥२६॥ तितने जो सब बरनन करी, बाढ़े ग्रन्थ पार महि धरौ। पंचम काल भेलसी ग्राम, भीषम शाहु वसं तिहि ठाम ||२६४।। चार पुत्र तिनके बड़भाग, कुलदीपक धर्महि अनुराग। प्रथम बहोरन मुन की खान, दुतिय सहोदर कृपा निधान ॥२६५।। अहमन तीजै सुख अति धर्म, चौथे रतनशाह धर धर्म । एक दिना शुभ या कहि पाय, मन्त्र उपाय कियौ बहुभाय ।।२६६।। नाशकर उत्तम मोक्ष प्रसाद को प्राप्त कर लेता है इसी प्रकार श्री इन्द्रभूति गौतम गणधर स्वामी ने भी सहज ही मोक्ष महल को प्राप्त कर लिया । अब मैं श्री जिनेन्द्र प्रभु महावीर स्वामी को पुनः पुनः स्तुति एवं नमस्कार करता हूं। श्री जिनेन्द्र महाबीर प्रभ गुणों के रत्नाकर हैं. वीर पुरुषों के द्वारा पूजित हैं, वीर पुरुषों के महावीर ही एक मात्र माश्रय एवं प्राधार है, इन्हीं के द्वारा मोक्षरूपी परम सुख प्राप्त हो सकता है। पापों को सर्वतोभावेन पराजित करने एवं जीतने के लिये महावीर प्रभु ही राम्रणी महायोद्धा हैं, उनका बल अपरिमेय है। अर्हन्त महावीर प्रभु को नित्यशः एवं कोटिशः प्रणाम करता हूँ और प्रार्थना करता हूं कि मेरा चंचल चित्त उन्हीं के चरणारविन्दों में लगा रहे । हे महावीर प्रभु, दया पूर्वक आप हमें भी ५७०
SR No.090094
Book TitleBhagavana Mahavira aur unka Tattvadarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1014
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Principle, & Sermon
File Size36 MB
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