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गोतिका-छन्द
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1. चार गति सुख दुःख भुजिय, तीर्थपद शुभ पाइयो । साध सुचारित जोग उत्तम, सकल कर्म खिपाइय।।।
सुर असुर नर खगपति मुनि सब, सदा सम्पति पद नये । तहं साधि शिवपुर सिद्ध पद लहि, पाटगुण मंडित भये ।।२६५।। वीर जिन जन चरन पूजत, वीर जिन प्राश्रय रहै । वीर नेह विचार शिव-सुख, वीर धीरजको गहै। बीर इन्द्रिय अघ धनेरे, वीर विजयी हों सही । वीर प्रभु मुझ बराहु चित नित, वीर कर्म नशाबही ॥२६६।।
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दोहा
श्री सन्मति प्रभु चरित गुण बरण्यौं पागम देख । अव कविता कूल कहें कछु, उतपति तिनहि विशेख ।।२६७।।
कवि परिचय
चौपाई
चार बरण में वैश्य जु सन्त, तिनमें कवि कुल को अवतंत। सबहि नेत चौरासी कहो, जुदी जुदी भाषौं यह मही ॥२६॥ गोलापुरद प्रथम बलान गौलालारे दूजे जान । गोलसिंघारे तीज धार, चौथे साख-बन्ध परवार ॥२६९।। पचम जैसवाल को जान, छठम हुमडे को बखान । कठनेरे सातम है सोइ, खण्डेलवाल पाठम गुण जोइ ॥२७०।। नेत बरहिया नवमै कहे. सिरीमाल दशमें पुन लहे ! एकादशम लमचू जान, प्रोसवाल द्वादश परवान ।।२७१।। श्रयदश अगरवारे गोत, तिनमें जे जैनी शुभ होत । इतनी साढ़े बारह न्यात, धर्मसनेह पांत इक भांत ।।२७२। जिनचेरे चउदम बर भये, बलवार पन्द्रम बरनये । षोडश पद्मावति पुरवार, ठस्सर सत्रहमें गुन धार ॥२७॥ गहपतिमाठारम तिहि शाख, उन वशितिमें मेमा भाख । वीसम नंत असैटी लहे, पहिलवार इकवीसम कहे ।।२७४।। पोरवार वाइसमौं धार, बढतवाल तेईस निहार । चौबीसम माहेश्वर वार, इतने लों कछु जैन लगार ।।२७५३॥ मण्डित बाल डौडिया जान, सहेलवार हस्सौरा मान । गोरवार पुन नारायना, सीहोरा भटनागर गना ॥२७॥ चीतोरा जु भटेरा होद, हरिमा और धाकरा सोइ । वाचन गरिया जानो दोड, मोर बाइडाको पुन सोह ॥२७॥ नागर और जलाहर कहे, नरसिंगपुरी कपोला लहै । डोसोवाल नगेन्द्रा लेव, गौड़ फर श्रीगौड़ ज भेवर गागड़ डाख डायलो जान, बघनौरा जुद सौरा वान । बन्ने रा कंथेरा हाल, कोरवाल पर सूरीवाल ॥२७ रैकवाल पुन सिंघवाल, नंत सिरैया लाड़ विशाल । लडेलवार पर जोरा प्रबल, जंबूसरा सेटिया अपर ॥२८॥ चतुरथ' पंचम दोम कूर्व, अच्चिरवाल अजुध्यापूर्व । नानाबाल मडाहर कहे, कोरटवाल करहिया लेहे ॥२६॥ अनदोरह हनदौरह सोइ, जेहरबार जेहरी दोइ । माघ करार नासिया एब, कोलपुरी यम चौरा हेव ॥२२॥ अंकन तह भैसन पुरवार, पवड़ावेस औमडे सार । ए जानी चौरासी नेत, वैश्य बरण सब ही शिर जेता
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सब लोगों ने लगाया और प्रभु की मोक्ष प्राप्ति के लिए पर्याप्त प्रशंसा की । इन्द्र इत्यादि ने उस पवित्र तम भमिकर धर्म की प्रबति को धारण किया तथा मोक्ष भूमि की कल्पना की।
___ इसके बाद श्री गौतम गणधर का भी शुक्ल ध्यान के द्वारा घातिया कर्मरूपी महाशत्रुओं का नाश हो गया और केवल जान उन्हें भी प्राप्त हो गया । अन्य गणधरों से युक्त होकर इन्द्रादि देवों ने उनकी पूजा प्रतिष्ठा की । इन्द्रभूति (गौतम) स्वामी परम विभतियों से युक्त थे अत: परम पूजनीय थे । उत्तम चारित्र के प्रताप से मनुष्य देवगति इत्यादि अनुपम सांसारिक सखों को और कर बाद में मनष्य विद्याधर एवं देव-स्वामियों के द्वारा पूजनीय होता है। तीर्थकर पदवी को प्राप्त होता है और कर्मों का
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