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लोक का वर्णन
( हरिवंश पुराण के आधार पर )
सब ओर से जिसका अनन्त विस्तार है, जिसके अपने प्रदेश भी अनन्त हैं तथा जो अन्य द्रव्यों से रहित है वह लोका
काश कहलाता है । यतञ्च उसमें जीवाजीवात्मक अन्य पदार्थ नहीं दिखाई देते हैं इसलिए वह अलोकाकाश इस नाम मे प्रसिद्ध है। गांत और स्थिति में निमित्तभूत धर्मास्तिकाय प्रपर्मास्तिकाय का प्रभाव होने से अलोकाकाश में जीव और पुद्दत की न गति ही है और न स्थिति ही है । उस अलोकाकाश के मध्य में असंख्यात प्रदेशी तथा लोकाकाश से मिश्रित श्रनादि लोक स्थित है | काल द्रव्य तथा अपने अवान्तर विस्तार से सहित अन्य समस्त पंचास्तिकाय यतश्च इसमें दिखाई देते हैं इसलिए यह लोक कहलाता है । यह लोक नीचे ऊपर के मध्य में वेत्रासन मृदंग और बहुत बड़ी झालर के समान है अर्थात् अधोलोक वैत्रामनठा के समान है, ऊर्ध्व लोक मृदंग के तुल्य है और मध्यलोक जिसे तिर्यक् लोक भी कहते हैं झालर के समान है। नीने श्राधा जाय तो गा आकार होता है जैसा ही लोक का साकार है किन्तु विशेषता यह कि
उस पर यदि पूरा
यह लोक चतुरस्त्र प्रर्थात् चौकोर है। अथवा कमर पर हाथ रख तथा पैर फैलाकर अचल स्थिर खड़े हुए मनुष्य का जो ग्राकार है उसी बाकार को यह लोक धारण करता है। अपने विस्तार की अपेक्षा मधोलोक मीचे सात र प्रमाण है, फिर फम-कम से प्रदेशों में हानि होते-होते मध्यम लोक के यहाँ एक रज्जु विस्तृत रह जाता है । तदनन्तर उसके आगे प्रदेश हानि होते-होते ब्रह्मब्रह्मोत्तरस्वर्ग के समीप पाँच रज्जु प्रमाण है । तदनन्तर उसके आगे प्रदेश हानि होते-होते लोक के अन्त में एक रज्जु प्रमाण विस्तृत रह जाता है। तीनों लोकों की लम्बाई चोवह रज्जु प्रमाण है। सात रज्जु सुमेरू पर्वत के नीचे और सात रज्जु उसके ऊपर है। चित्रा पृथिवी के अधोभाग से लेकर द्वितीय पृथिवी के ग्रन्त तक एक रज्जु समाप्त होती है, इसके आगे तृतीय पृथिवों केर तक द्वितीय रज्जु चतुर्थ पृथिवो केन्द्र तक पंचम रज्जु सप्तम पृथिवी के अन्त तक पष्ठ रज्जु धौर जोक के यन्त तक सप्तम रज्जु समाप्त होती है अर्थात् चित्रा पृथ्वी के नीचे छह रज्जु की लम्बाई तक सात पृथ्वियां और उसके नीचे एक रज्जु के विस्तार में निगोद तथा बातवलय हैं। यह तो चित्रा पृथ्वी के नीचे का विस्तार बतलाया अब इसके ऊपर ऐशान स्वर्ग तक डेढ़ रज्जु उसके आगे माहेन्द्र स्वर्ग के अन्त तक फिर डेढ़ रज्जु, फिर कापिष्ट स्वर्ग तक एक रज्जु तदनन्तर सहस्त्रार स्वर्ग तक एक रज्जु, उसके आगे श्रारण अच्युत स्वर्ग तक एक रज्जु और उसके ऊपर ऊर्ध्व लोक के अन्त तक एक रज्जु इस प्रकार कुल सप्त रज्जु समाप्त होती है ।
चित्रा पृथिवो के नीचे प्रथम रज्जु के अन्त में जहां दूसरी पृथिवी समाप्त होती है वहां लोक के जानने वाले यात्रायें अरे का विस्तार एक रज्जु तथा द्वितीय रज्जु के सात भागों में से छह भाग प्रमाण बतलाया है द्वितीय रज्जु के अन्त में जहां तीसरी पृथिवी समाप्त होती है वहां अधोलोक का विस्तार दो रज्जु पूर्ण और एक रज्जु के सात भागों में से पांच भाग प्रमाण बतलाया है। तृतीय रज्जु के अन्त में जहां चौथी पृथ्वी समाप्त होती है वहां अधोलोक का विस्तार तीन रन्जु धौर एक रजु के सात भागों में से चार भाग प्रमाण बतलाया है। चतुर्थ रज्जू के अन्त में जहां पांचवीं पृथिवी समाप्त होती है, वहां घोलोक का विस्तार चार रज्जु और एक रज्जु के सात भागों से तीन भाग प्रमाण कहा गया है, पंचम रज्जु के अन्त में जहां पृथ्वी समाप्त होती है, वहाँ अधोलोक का विस्तार पाँच रज्जु श्रीर एक रज्जु के सात भागों में से दो भाग प्रमाण बत लाया है, पष्ठ रज्जु के अन्त में जहां सातवीं पृथ्वी समाप्त होती है वहां अधोलोक का विस्तार छह रज्जु धीर एक रक्
के
प्राप्त हो, उतना तीतरी पृथ्वी पर्यन्त क्षेत्र के घनफल का प्रमाण है, और दूसरी पृथ्वीपर्वत क्षेत्र का घनकल डेढ़ घनराजु प्रमाण लाने के लिये उसे दुगुना करना चाहिये ।
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