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चार दान का वर्णन
चौपाई प्रथम दान पाहार जु देय, भोगभूमि सुर सुरुय लहेय । दूजौ शास्त्र दान को गहै, यातें धर्म ज्ञान गुण लहै ।।११।। पोषधि दाम देइ मन शुद्ध, तब नियोग द्युति धारै बुद्ध । अभय दान सब जीवन करै, इन्द्र चत्रवति पद सौ घरै ।।११।।
___ दोहा ग्राभूषण पांची लहै. दृषण पांचौ त्याग । गुण साती जब उर धर, नवधा पुण्य सुहाग ।।१३०॥
दातार के ५ आभूषण
चौपाई
यानंद प्रादर प्रिय वच कहै, निर्मल भाव जु उर में लहै । सफल जन्म करि अपना लेख, पाभूषण पांचौं इम पेख ।।१२१||
दातार के ५ दूषण बिमख विलम्ब वचन आपेह, प्रादर चित्त करै नहि लेद । देकर पश्चाताप न करे. गह गानों दुगण सो घर ॥१२॥
दाता के ७ गुण श्रया ज्ञान प्रलोभता जान, दया क्षमा निज शक्ति प्रमान | भक्ति सहित ये जानो सात, सो दाता जग गुण विख्यात ।।१२३||
नवधा भक्ति का वर्णन पड़गाहन पाहिको करै, उच्चासन वैठक पुन धरै। चरण धोय बन्द कर जोर, विधि सौ पूजा कर बहोर ।।१२४॥ मन वन काय हर्षे मन ग्रान, शुद्ध प्रहार देह सुखखान । नब विवि पुण्य लहै यह सोइ, चौदह मल वजित अघ धोह ।।१२५||
चौदह मलों के नाम जीव बद्ध जहं रोम जु चाम, मांस रुधिर पर हाड़ हि नाम । इन संगत की वस्तु न लेइ, दुरगंधा थानक तज देइ ।।१२।। कंद मूल फल रहित जु देइ, पान फूल बहु वजित जेइ । स्वाद रहित अरु बहु दिन वस्त, ये चौदह मल त्याग प्रशस्त ।।१२७।।
दोहा
पात्र अपात्र कुपात्र के, भेद बहुत परकार । उत्तम मध्यम जघनता, कहीं जथारथ धार ।।१२।।
प्रथम गुणवत होता है तथापि अनेक कार्यों के प्रारम्भ करनेको अकारण ही बन्द कर देना अनर्थ दण्ड विरति नामका गणव्रत कहा गया है। इस अनर्थ व्रतके पांच भेद हैं। पापोपदेश, हिंसा-दान अप-ध्यान, दुःथति और प्रमादचर्या । जो इन्द्रिय रूपी पांच शत्रओंको जीतनेके लिये भोग्योपभोग्य वस्तुओं का परिमाण निश्चित किया जाता है । वह भोगोपभोग परिणाम नामका गणनत कहा जाता है। पाप नाश पूर्वक ब्रत परि-पालनके लिये पापभीरु ब्रदियोंके लिए सूक्ष्म जीव-बाले अदरख इत्यादि कन्दत्याज्य हैं। इसी तरह कीड़ा के खाये फलोंको फलों को और सम्पूर्ण अभक्ष्य वस्तुओंका विष और मलादि वस्तुओंसे व्याप्त समझकर छोड़ देना चाहिये।
घर टोला पड़ोस खेत मुहल्ला और बाजार इत्यादि स्थानोंमें पाने जाने का नित्यशः प्रमाण निश्चित कर लेना है। उसको देशावकाशिक शिक्षाबत कहते हैं। बरे ध्यान बुरी लेश्यानोंका परित्याग करके जो प्रतिदिन तीनों समयमें सामायिक जाप किया जाता है उसे सामायिक शिक्षाव्रत कहते हैं। जो कि अष्टमी और चतुर्दशी (चौदा) के दिन अन्य सब कार्योको
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