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पंचदश अधिकार
मंगलाचरण
दोहा दोष अठारह रहित प्रभु, गुणहि छयालिस पूर । प्रनमौ वीर जिनेशपद, दही कमं अघ चूर ।।१।।
सम्यग्दर्शन तथा चारित्र का वर्णन
चौपाई
अब सुन गौतम धर्म निधाम, कहो मुक्तिमारग सूखखान । समकित प्रथम धरै जब जीव, श्रावक जतिबर धर्म अतीव ।।२।। धर्ममूल है समकित सार, जब जिनवाणी निहचे धार । गुरु निरग्रंथ सत्य मन नमैं, दया धर्म पालें अघ बमैं ||३|| अनंतानुबंधी है चार, दर्शन मोह तोन अवधार । सात प्रकृति ये उपशम करै, जब जिय उपशम समकितधरै ॥४॥ तब ये सात प्रकृति खय होइ, क्षायिक समकित जानों सोइ । कछु उपशम कछु नाश जु लहै, बेदक समकित तासौ कहैं ।।५।।
दोहा सो समकित नव भेद जुत, कयो मागंणा मांहि । अब उपजत दश भूमिका, बरणौ श्रागम पाहि ।।६।। -
चौपाई प्राज्ञा मारग अरु उपदेश, सूत्र बीज सम्यक्त्व महेश । संक्षेपहि विस्तार जु अर्थ... गाढ़ परम अवगाढ़ दशार्थ ।।७।।
आज्ञा सम्यक्त्वका लक्षण
जो सर्वज्ञ वचन नय कहयो, पट द्रव्यादिक रुचि सरदह्यो । करै गरु व श्रद्धा नरनार, सो याज्ञा सम्यक्त्व हि धार ||
मार्ग सम्बक्त्वका लक्षण
जो निःसंग रहे, थिर चित, पानपात्र लक्षण जु पबित्त। मोख मार्ग सून श्रद्धा करै, सो मारग सम्यक्त्व हि धरं ॥३॥
उपदेश सम्यक्त्वका लक्षण रेशठ पुरुषादिक जु महान, तिन पुराण सुन श्रद्धावान । निश्चय नय जो करहि प्रतीत, सो सम्यक उपदेश पुनीत ।।१०।।
मुक्ति प्रदायक ज्ञानयम समोशरशण पासीन । करें धर्म-उपदेश को कर्म-बन्ध से हीन ।।
पूर्व-अधिकारमें गणधर देव गौतम स्वामीके कई प्रश्नोंका यथार्थ उत्तर देकर श्रीमहावीर प्रभुने कहा कि गौतम, तुम बहुत बद्धिमान मालूम पड़ते हो, इसलिए अब मैं मुक्ति-मार्गको कहता हूं, अन्यान्य जीव-समूहों के साथ तुम सावधानी पूर्वक सुनो। मेरे बताये रास्ते पर चलने से मनुष्यों को निश्चय रूपेण मोक्ष प्राप्त हो जाता है। जो शङ्का इत्यादि दोषों से होन है