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कठिन जोग धारै उत्सर्ग, मोन सहित धारै तप वर्ग । आप शक्ति को परगट करें, ते नर स्वर्ग मुक्ति पद धर ।।२१२।। निज बीरज पाछादै नाहि, तप व्रत धर्म धरै उरमांहि । करें ध्यान उत्सर्ग प्रसिद्ध, तप प्रसिद्ध शुभ कारण ऋद्ध ।।२१।। खोदन मह व्यापार ज कर जोरै, पाप कर्म बहु धरै । अरु परघात बात बहु कहै, तप असमर्थ निन्द्य वप लहैं ॥१४॥
दोहा
इहि विधि यह संसार दुख, सुख नहि जीव लहंत । भविजन सुन मन चेतकर, धरौ धरम जग संत ॥२१५।। शिवपद वीरज धर्म है, देखो निजउर ढोहि । क्षमा सलिल सौ सीचिये, अल्पकाल फल होहि ।।२१६॥ पाप पुण्य अधिकार ग्रह, प्रश्न शुभाशुभ सार । वीरनाथ जिन प्रकट कहि, सब जीवन हितकार ||२१७॥ सुन हरषों द्वादश सभा, बाढ्यो आनन्द कन्द । ज्यों सूरज के उदय ते, विकसै वारिज वन्द ।।२१।।
गीतिका छन्द
इहि भांति कर्म विपाक जग जिय, पाप पुण्यहि जोगवै । अशुभ शुभ जिन करहि करणी, दुख सुख तसु भोग ।। लोह कंचन पगन वेरी, दोइ विधि छूट जबै । तबहिं शिवपुर पंथ पावै, नवलशाह सु वीनवै ॥२१॥
निन्ध मार्गमें स्थित हो वार कगुरु, कुदेव एवं धर्म की सेवामें जुटे रहते हैं उन्हें पूर्वजन्म के कुसंस्कार से ही परलोक के कल्याण को नष्ट कर देनेवाले मिथ्यामतकी ओर प्रीति उत्पन्न हो जाती है। जो जीव जिनेन्द्र शास्त्र, गुरु एवं धर्म की दिव्यदृष्टि से सूक्ष्म परीक्षा कर चुकने के बाद उनके अपूर्व गुणों पर मुग्ध होकर श्रद्धाभक्ति पूर्वक सेवा में तत्पर रहते हैं और हेय मार्गपर चलने वाले अन्य पुषोंकी स्वप्न में भी इच्छा नहीं करते वे वास्तविक जिनधर्मके अनुरागी हैं और वे परलोकमें भी मोक्ष-पथ पर ही अग्रसर होते जाते हैं। जो स्वर्ग एवं मोक्षकी अनन्य अभिलाषा से परिग्रह हीन होकर व्युत्सर्ग तथा मौनव्रतरूप योग गुप्तिका यथाशक्ति अनुसरण किया करते हैं तथा तप इत्यादि श्रेष्ट धर्मकार्यों में अपनी शक्ति की वास्तविक स्थिति का सदुपयोग करते हैं वे कठिन तपस्याके उग्र कष्टोंके सहन करने में पूर्ण समर्थ दृढ़ एवं सुन्दर शरीर को प्राप्त करते हैं। जो कि तपस्याके समक्ष एवं शक्तिशाली होकर भी केवल काय-सुखमें आसक्त रहते हुए उसका दुरुपयोग करते हैं और अपने बल एवं शक्तिको धर्म तथा व्युत्सर्ग तपमें नहीं लगाते, वे कोटि गह-व्यापारीसे पाप ही कमाया करते हैं और तप कर्ममें असमर्थ उनका शरीर नितान्त निन्दनीय होता है। इस प्रकार श्री जिनेन्द्रदेव महावीर प्रभुने सम्पूर्ण उपस्थित विविध जीव समूहों के सामने दिव्य गम्भीर एवं मधुर वाणीसे गणधर देव गौतम स्वीमीके प्रश्नों का युक्तियुक्त, वास्तविक एवं सार्थक उत्तर प्रदान किया। उन प्रहन्त देव श्री महावीर प्रभकी मैं श्रद्धाभक्ति पूर्वक स्तुति करता हूं।
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