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एकादश अधिकार
मंगलाचरण
दोहा श्री सन्मति प्रभु गुन गरुक, केवलज्ञान सुभान। मिथ्यातम हर जग हरश, बन्दी शिरधर पान ॥१५॥ तेरहमें गुण प्रभु चढे, उपजी पंचम ज्ञान । लोकालोक प्रकाशियौ, वस्तु चराचर जान ।।२।।
चौपाई
उत्तम मास नाम वैशाख, शुक्लपक्ष दशमी तिथि भाप । हस्त उत्तरा नखतहि बीच, चंद्र जोग शुभ लगन गनीच ।।३।। प्रभु तब केवललब्धिसहाय, तिनके नाम सुनो समुदाय । क्षायिक सम्यक दायक मोख, यथास्यात चारित सुख पोख ॥४!!
केवल ज्ञान प्रकाशसे, दूर किये अज्ञान । विश्व-अर्थ-उपदेश रत, प्रभु हैं परम महान ॥ श्री वीरनाथ भगवान तीन जमतके स्वामी हैं, केवल ज्ञानरूपो सूर्य के समान अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाले हैं, मैं उनको नमस्कार करता हूं।
विह
वीर सर्वज्ञता Outside the town Jrmbhika-Grama, on the Northern bank of the river Rajupalika ia the field of the house holder Samaga, under a Sala tree, in deep meditation, Lord Mahavira reached the complete and full, the unobstructed, unimpeded, infinite and supreme, best knowledge and ntuitation, called KEVALA.
Dr. Bool Chand : Lord Mahavira. (JCRS. 2) p. 44
विहार प्रान्त के जम्भकग्राम के निकट ऋजुला नदी के किनारे शाल वृक्ष के नीचे एक पत्थर की चट्टान पर पद्मासन से बर्द्धमान महावीर शुक्ल ध्यान में लीन थे। १२ वर्ष ५ महोने और १५ दिन के कठोर तप से उसके सामावरणी, दर्शनारवणी, मोहनीय और अन्तगय पारों घातिया कर्म इस जरह से नष्ट हो गये, जिस तरह भट्ठी में तपने से सोने का खो: नष्ट हो जाता है, जिसरो हजरत ईसामसीह मे ५५७ वर्ष पहले वैशाख सुदि दशमी के तीसरे प्रहर महावीर स्वामी केवल ज्ञान प्राप्त कर सर्वज होकर आत्मा मे परमात्मा हो गये। अब वे संपूर्ण जान के धारी थे। तीनों लोक और तीनों काल के समस्त पदार्थ तथा उनको अवस्थाए' उनके ज्ञान में पंण के समान स्पष्ट झनकती थीं।
निस्संदेह केवलशान' प्राप्त करना अथवा सर्वज्ञ होना मनुष्य जीवन में एक अनुपम और अद्वितीय घटना है। इस घटना के महत्व को साधारण वृद्धिवाले शायद न भी समझें, परन्तु ज्ञानी और तत्वदर्शी इसके मूल को ठीक परख सकते हैं। जानके कारण ही मनुष्य और पशु में इतना अन्तर है और जिसने केवल ज्ञान प्राप्त कर लिया, इससे अनोषी और उत्तम बात मनुप्य जीवन में क्या हो सकती है ? यह अवश्य ही जैन धर्म की विदोषता है कि जिसने साधारण मनुष्य को परमात्मा पद प्राप्त करने की विधि बनाई। मनु यत्व का ध्येय ही सर्वज्ञता है और यह गुण वीरस्वामी ने अपने मनुष्य जीवन में अपने पुरुषार्थ से स्वयं प्राप्त करके संसार को बता दिया कि वह भी सर्वज्ञता प्राप्त कर सकते हैं। महात्मा बुद्ध, महावीर भगवान् के समकालीन थे। बाबजूद प्रतिद्वन्दी नेता (Rival Reformer) होने के, उन्होंने भी वीर स्वामी का मर्वज और सर्वदर्शी होना स्वीकार किया है । मज्झिमनिकाय और न्यायबिन्दु नाम के प्रगिद्ध बौद्ध ग्रन्यों में भी थी वर्द्ध मान महावीर को सर्वज्ञ, स्पाट शब्दों में