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रोहित
हरिकान्ता
हरित
सोतोदा
सीता
उत्तर की छ:
नदियां
विदेह की ६४
नदियां
विभंगा
कुण्ड
के पास
1
रोहितास्वायत्
रोहित से दुगुना
(गंगा से चौगुना)
हरिकान्तावत्
हरिकान्त से दूना
(गंगा से थाठ गुना )
सीतोदावत्
क्रम से हरितादिवत्
गंगानदीवत्
५० को.
महानदी के पास ५०० को
दृष्टि सं० २
१६५९२६.
(उत्तर
दक्षिण)
सर्वत्र गंगा से दूना
१७३७ ४। १८६ | १७ | १५१
१७४८५१८८२१
१७७३
२०७४
२१२२
२११८
२२१६
१७३
६।१८८/२६
७|१८८१३३ 11
१६२९
११२४१८६
(दे. लोक
३|१०)
३।१०११३१
१७६।१३
"
१५२
प्र. पू. में मुहूर्त २४, द्वि.पु. दि. ७. तू. पू. दि. १५. व. पु. मा. १, पं. पू. मा. २, प. पू. मा. ४, स. पू. मा. ६ । इस प्रकार जन्म-मरण के अन्तरकाल का प्रमाण समाप्त हुआ ।
नारकों से निकले हुए उनमें से कितने ही जीन मानों (संपदियों) में, ढाड़ों अर्थात् ती पक्षियों में, तथा जलचर जीवों में जाकर और संख्यात वर्ष की आयु से युक्त होकर पुनः हरकों में जाते हैं ।
५९६ ३१८०
1
27
६०५
३।१८१
22
चौबीस मुहुर्त, सात दिन, एक पक्ष, एक मास दो मास चार मास और छह मास यह क्रम से प्रथमादिक पृथ्वियों में जन्म-मरण के अन्तर का प्रमाण है ।
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३।१८२
७/२७
रत्नप्रभाविक पृथ्वियों में स्थित नारकियों के अपनी संख्या के असंख्यातवें भाग प्रमाण नारकी प्रत्येक समय में उत्पन्न होते हैं और उतने ही मरते भी हैं ।
इस प्रकार एक समय में उत्पन्न होने वाले व मरने वाले जीवों का कथन समाप्त हुआ।
नरक से निकले हुए जीव गर्भज, कर्मभूमिज, संज्ञी एवं पर्याप्त ऐसे मनुष्य और तिर्वचों में ही जन्म लेते हैं। परन्तु अन्तिम पृथ्वी से निकला हुआ जीव केवल तिन ही होता है, अर्थात् मनुष्य नहीं होता।
दांतों वाले शादि में हार्दिक
नरक में रहने वाले जीव वहाँ से निकलकर नारायण प्रतिनारायण वरभद्र और कवर्ती कदापि नहीं होते। तीसरी पृथ्वी तक के नारको जीव वहाँ से निकल कर तीर्थकर हो सकते हैं ।