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२. धातकी खण्ड के बनखण्ड
-सामान्य नियम–सर्व वन जम्बूद्वीप धालों से दूने विस्तार वाले हैं। (ह. पु. 1५।५०६)
उत्तर दक्षिण विस्तार
नाम
पूर्वापर विस्तार
ति. प. ४ागा
रा. बा.३।
ह.पु. ३३१६प.प.
गा.
प्रादिम । मध्यम
मध्यम
अन्तिम
यो.
बाह्य
५८४४
___यो. । यो. यो. ५८७४४८६१३ | ५६०२३८३३३५९३०२७११६ २६०६-२६६० २१६७४६ः | २१३६५६३६६ | २१११६७६ र २६०६-२७००
अभ्यन्तर
मेरु से पूर्व या मेरु के उत्तर या उत्तर दक्षिण कुल पश्चिम में । दक्षिण में विस्तार
यो.
यो
।
यो.
भनुशाल । १०७८७६
नष्ट
२५२८
वलयव्यास
बाह्यव्यास
अभ्यन्तरन्यास
नदन्न
६३५०
१६५४३१
सौमनस
१९६११ ।
२८०० १२ चूलिका
पाण्डुक
४६४
१०००
५२७
र.प्र. को. ४: श.प्र. वा. प्र. ३; पं. प्र. . प्र. २; त. प्र..; म, त. प्र. १ को। इम प्रकार अवधिज्ञान का क्षेत्र समाप्त हुआ।
अब इस समय नारकी जीवों में यथायोग्य क्रम से गुण स्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा, मार्गणा और उपयोग (जान-दर्शन), इनका कथन करने योग्य है।
सब नारकी जीवों के मिध्याष्टि, सासादन, मिश्र और अविरतसम्यग्दृष्टि, ये चार गुणस्थान हो सकते हैं।
अप्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय से सहित, हिंसा में आनन्द मानने वाले और नाना प्रकार के प्रचुर दुःखों से संयुक्त उन सब नारकी जीवों के देशविरत आदिक उपरितन या गुण स्थानों के हेतुभूत, जो विशुद्ध परिणाम हैं, वे कदाचित् नहीं होते हैं।
इन नारकी जीवों के पर्याप्त और अपर्याप्त दो जीवसमास तथा छह प्रकार पर्याप्तियां व इतनी (छह) ही अपर्याप्तियां भी होती है।