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२. गोल पर्वत
-- - - - - - - विस्तार
ति. प.। । रा.वा.।३।१० ह.पु.। | ति.सा.। मध्यम में | ऊपर | ४गा. | वा.।पृ.प. | ५|गा.। मा.
ऊंचाई गहराई
ज.प.। प्र.गा.'
यो... यो. । यो
वृषभगिरि
नाभिगिरि दृष्टि सं० १ दृष्टि सं० २' १००० .
७१८ | ३२१०
० १०००। १७०४ ।७।१५२।१२. ७५० | ५०० १७०६
सुमेरु :
-
पर्वत
१०,००० । दे. लोक । | १००० १७८१ ३।११
१७६५
७।१७७।३२ | २८३ । ६०६ ७।१८०।१४ | ३०२ | ६२७
४।२२ ४।१३२
चूलिका
पमक :दृष्टि सं० दृष्टि सं०२
१०००
ऊंचाई से गहराई
१०००
.
।७।१७४।२६ । १६३
६।१६
कांचनगिरि
१००
२०६४
७।१७५११
६.४५
दिग्गजेन्द्र
१००
१३०
५० '२१०४,
४७६
दो हजार योजन अधिक एक राजु में से तीसरी अादिक गृग्विी के बाहल्य प्रमाण को घटा देने पर जो शेष रहे, उतना छठी पृथ्विी पर्यन्त प्रस्थान अन्तरात का प्रमाण कहा गया है ।।
मौ के वर्ग में से एक कम करके दोष को आधा करे और उसे एक राजु में जोड़कर लन में से अन्तिम भूमि के बाहल्य को घटा देने पर मची पूची के अन्तिम इन्द्रक और अघि-स्थान इन्द्रक के बीच प्रस्थान अन्तराल का प्रमाण निकलता है।
धर्मा पृथ्वी के इन्द्रक बिलों का अन्तराल छह हजार चार सौ निन्धान गोजन, दो कोस और एक कोस के बारह भागों में से ग्यारह भाग प्रमाण है । ६४६१ यो. २११ को ।।
रत्नप्रभा प्रथिवी के अन्तिम इन्द्रक और शकरा प्रभा के आदि के इन्द्रक विलों का अन्तराल दो लाख नौ हजार योजन कम एक राजु प्रमाण है। २०१००० यो. कम १ रा.।
बंदा। पृथ्वी के ग्यारह इन्द्रकों का अन्तराल एक तीन हजार योजन और चार हजार सात सौ धनुष प्रमाण है। २६९९ यो. ४७०० धतु.।
वंशा पथिवी के अन्तिम इन्द्रक स्तनलोलुक से मेधा पृथ्विी के प्रथम इन्द्रक तप्तमा अंतराल छब्बीस हजार योजन कम एक राज प्रमाण
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