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३. पर्वतीय व अन्य कूट :
कूटों के विस्तार सम्बन्धी सामान्य नियम :- सभी कूटों का मूल विस्तार अपनी ऊंचाई का अर्थ प्रमाण है। ऊपरी विस्तार को गहराई के समान है।
आप
प्रवस्थान
विजयार्थ
भरत विजयार्थ ६
ऐरावत
हिमवान्
महाहिमवान्
निषेध
नील
रुक्मि
शिरी
हिमवान् का
सिद्धायतन
शेष पर्वत
ऊंचाई
चारों गजदन्त
यो०
२५
५००
मूल
में
पो०
६.
भरत विज
विस्तार
यार्थ वत्
२५
हिमवान् से दुगुना
हिमवान् से चौगुना
निषधवत्
महाहिमवानवत्
हिमवानवत्
५००
हिमवान् के समान
(रा. वा. ३३।११।
४११०३५
६।१८३३१०
८१६३२५९
१०।१८३।१२:
१२।१६४१५)
पर्वत से उपरोक्त नियमा'नियमा
चौपाई नुसार जानता
मध्य में ऊपर
यो ०
ོ
१८३ |
यो०
३३
३७५ २५०
१५४
त्रि. प. रा. वा. ३ . पू.गा. ज.प.
४। गा.
श्री. पू. प.
रागा. गा. अ./गा.
१४६
१६३३
१७२५
१७५३
२३२७
२३४०
२३५५
|११।२।१६२।१६
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११२
५५. |
७२
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२०३२, १०।१३।१७३१- २२४
२०४८
२३
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| १०१ |
| १०४ |
| १०५ |
७२३ SIVE
७२३
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२७६
३।४६
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