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1म । स्थल विशेष
ऊंचाई | गहराई चौड़ाई| लम्बाई यो यो यो । यो
। ति. प. .॥३॥ ह. पू. त्रि. साज.प. ।गाः ||
| १०।१३। ।५|गा. गा. अ. गा.
बक्षार
| सामान्य
६५६२ । २२३१ , १७६।३ | x
६०५, ! ७८ ७४३
नदी के पास
२३०७
| १७६०१ | २३३ । ७४५
७.१८
पर्वत के पास ।
गजदन्त
| सामान्य
ऊंचाई से चौथाई
३०२०६३ । २०
२०१७
दष्टि सं०१ | कुलाचलों के पास ४००
मेरु के पास । ५००
दृष्टि सं०२ 'कुचालकों के पास ४००
२०२७ | १७३।१६
| मेरु के पास
। ५००
।
प्र. पृ. के इन्द्रकों का अन्तराल... (5००००-२०००)x४-१x१३) _७८०००x४-१३,
४६
- =६४३९- -यो --- (१३-१४४
(३२०००-२०००)४४--(३-११) ३००००x४-३ ० द्वि, पृ. के_(३२०
(११-१)४४
३५
सातवीं पृथ्वी के बाहय में से इन्द्र क और रंगीबद बिलों के बाहत्य' प्रमाण को घटाकर अवशिष्ट राशि को आधा करने पर कम से इन्द्रक और श्रेणीबद्ध बिलों के कार-नीचे की पृथ्वी की मुटाई का प्रमाण निकलता है ।
५००-१ -३६६९ पो.
सातवीं पृथ्विी के इन्द्रक बिल के नीचे और ऊपर की पृथ्वी का बाल्प
सा. पृ, के श्रेणी बद्ध बिलों के ऊपर-नीचे की पृथ्विी का बाहल्य।
एक राज में में पहली और दूसरी पृथित्री के बाहुल्य प्रमाण को कम करके अवशिष्ट राशि में तीन हजार योजनों के मिलाने पर प्रथम पृथ्विी के अन्तिम और द्वितीय पृथ्विी के प्रथम बिल के मध्य में परस्थान अन्तराल का प्रमाण निकलता है।
विशेषार्थ—प्रथम पृत्रिो की मुटाई १५०००० योजम और द्वितीय पृथिवी की मुटाई २२००० योजन प्रमाण है। इस मृटाई से रहित नों पृथ्वियों के मध्य में एक राजु प्रमाण अन्तराल है। चूंकि एक हजार योजन प्रमाण चित्रा-पृषिधी की मुटाई प्रथम पृथिवी की मूटाई में सम्मिलित है परन्तु उसकी गणना उज़ लोक की मुटाई में की गई है, अतएव इसमें से इन एक हजार योजनों को कम कर देना चाहिये। इसके अतिरिक्त प्रथम पृथ्विी के नीचे और द्वितीय पृथ्विी के ऊपर प्रक-एक हजार योजन प्रमाण क्षेत्र में नारकियों के बिलों के न होने से इन दो हजार पोजनों को भी कम कर देने पर शेष २०६७०० (१८००००-३२०००-२०००) योजनों से रहित एक राजु प्रमाण प्रथम पृथ्विी के अन्तिम और द्वितीय पृथिवी के प्रथम इन्द्रक के बीच परस्थान अन्तराल रहता है।