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श्रीचन्द्रा
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भृगनिभा
क्रम से पद्म, महापद्म, केसरी, महापुण्डरीक व पुण्डरीक द्रह हैं । ति, प. में रुक्मि पर्वत पर महापुण्डरीक के स्थान पर पुण्डरीक तथा शिखरी पर्वत पर पुण्डरीक के स्थान पर महापुण्डरीक कहा है।
२ समेरु पर्वत के वनों में
आग्नेय दिशा को आदि करके (ति. प. ।४।१६४६, १९६२-१९६३), रा. वा. ।३।१०।१३।१७६।२६), (ह. पु. ५।३३४-३४६), त्रि. सा. ६२८१६२६), (ज. प.।४।११०-११३) । सौमनसवन नन्दनवन
सौमनसवन
नन्दनवन (ति.प.) (रा. वा.)
(ति. पा.) उत्पलगुल्मा
श्रीभद्रा
श्रीकान्ता नलिना
श्रीकान्ता उत्पला
श्रीमहिता
श्रीनिलया उत्पलोज्ज्वला
श्रीनिलया
श्रीमहिता भगा
नलिना (पद्मा)
नलिनगुल्मा (पगुल्मा) कज्जला
कुमुदा कज्जलप्रभा
कुमुदप्रभा नोट: ह. पु., त्रि.सा. ब. ज. प. में नन्दन वन की अपेक्षा ति. प. वाले ही नाम दिये हैं। ३ देव व उत्तरकुरु में
(ति.प. २०११, २१३६), रा. वा. १३।१०।१३।१७४। २९+१७१५, ६, ६, २८), (ह. पु.।५।१९४-१९६), (त्रि.सा. १६५६), (ज. प.।६।२८, ८३) सं० देवकुरु में दक्षिण से
उत्तरकुरु में उत्तर से उत्तर की ओर
दक्षिण की मोर
नील देवकृरु
उत्तरकुरु सर
चन्द्र
ऐरावत विद्युत
माल्यवान् (तिडित्प्रभ) ७. महाहृदों के कटों के नाम
१. पद्रह के तट पर ईशान आदि चार विदिशाओं में वैश्रवण, श्रीमिचय, क्षुद्राहिमवान् व ऐरावा ये तथा उत्तर दिशा में श्री संचय ये पांच कट हैं। उसके जल में उत्तर आदि आठ दिशाओं में जिनकूट, धोनिचय, वैडूर्य, अंकमय, पाश्चर्य, रुचक, शिखरी व उत्पल ये पाठ कट हैं। (ति.प.।४।१६६०-१६६५) ।
२. महापद्य आदि ग्रहों के कटों के नाम भी इसी प्रकार हैं। विशेषता यह है कि हिमवान् के स्थान पर अपने-अपने पर्वतों के नाम वाले कूट हैं (ति.प. १४।१७३०-१७३४, १७६५-१७६९)।
८ जम्बूद्वीप की नदियों के नाम
१ भरतादि महाक्षेत्रों में--क्रम से गंगा-सिन्धु, रोहित रोहितास्या, हरित, हरिकान्ता, सीता-सीतोदा, नारी, नरकान्ता, सुवर्णकूला-रूप्यकूला, रक्ता-रक्तोदा ये १४ नदियाँ हैं। (दे० लोक ।३।१।ब लोक ।३.१०)
२ विदेह के ३२ क्षेत्रों में-गंगा-सिन्छ नाम को १६ और रक्ता-रक्तोदा नाम की १६ नदियां हैं (दे० लोक ।३।१०) प्रथम पृथ्वी में त्रसित नामक दशवें इन्द्रक का विस्तार छत्तीसलाख पचहत्तर हजार योजन प्रमाण जानना चाहिये। ३७६६६६६३-६१६६६१=२६५५००० ।
बक्रान्त नामक ग्याहरवें इन्द्रक का विस्तार पैतीस लाख तेरासी हजार तीन सौ तेतीस योजन और एक योजन के तीन भाग में से एक भाग है। ३६७५०००-६१६५६३ =३५८३३३३।।
निषध
सुलस