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क्रम
५
८
५
८
&
१०
कूट
सागर
रजत
पूर्णभद्र
सीता
हरिसह
(रा, वा) सिद्धायतन
माल्यवान
उत्तरकुरु
कुच्छ
विजय
सागर
रजत
पूर्णभद्र
सीता
हरि
देव
भोगवती देवी
(भोर)
भोगमालिनी देवी
सीतादेवी
जिनमंदिर
भोगवती भोगमालिनी
क्रम
१
२
५
६
१७
१३२
5
१
२
५
६
५ सुमेरु पर्वत के वनों मे कूटों के नाम व देव
( ति. प.) सोमनस वन में
وا
कट
नन्दन
मन्दर
निषध
हिमवान्
रजत
रुचक
सागरचित्र
वज्र
( शेष ग्रन्थ) नन्दन वन में
नन्दन
मन्दर
निवध
हैमवत
रजत
दचक
सागरचित्र वज्र
देव
मेषंकरा
मेघवती
सुमेधा
मेघमालिनी
तोपधरा
विचित्रा
३६५००००–६१६६६३ ३८५८३३३३ ।
तप्त नागकनवें इन्द्र का विस्तार सेलीस लाल छ्यासठ हजार छह सौ छ्यासठ योजन के तीन भागों में से दो भाग है । २८५८३३३३ - ९१६६६ ३७६६६६६३ ।
पुष्पमाला
यनिन्दिता
मेघवती
मेघंकरी
सुमेधा
मेघमालिनी
तोयन्धरा
विचित्रा
( ति प ।४।१६६६-१६७७), (रा. वा. ३११०११३। ह. पु. १५।३२९), (त्रि. सा. १६२७), (ज. प. ४॥ १०५) । नोट:- ह. पू. में सं० ४ पर हिमवत, सं० ६ पर रजत, सं० पर चित्रक नाम दिये हैं। ज० प० में सं० ४ पर
हिमवान नं ० ५ पर विजय नामक कूट कहे हैं। तथा सं० पर देवी का नाम मणिमालिनी कहा है । ६, जम्बूद्वीप के ग्रहों व नापियों के नाम
१ हिगवान यादि कलानों पर
तुष्यमाला
मानन्दिता
४१३३३३३३-२१६६४०४१६
प्रथम पृथ्वी में असम्भ्रान्त नामक सातवें इन्द्रक का विस्तार उनतालीस लाख पचास हजार योजन प्रमाण है ।
४०४१६६६१-११६६६५००००
विभ्रान्त नामक आठवें इन्द्रक का विस्तार अड़तीस लाख अठावन हजार तीन सौ तेतीस योजन और एक योजन के तीन भागों में से
एक भाग प्रमाण है ।