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७. नील पर्वत - ( पूर्व से पश्चिम की ओर )
ति.प. ४१२३२८ ! २३३१), ( रा. वा. १६।११।६।१८३/३४), (ह्. पु. ५६६ १०१), (त्रि. स. १७२६), (ज. प. ०३।४३) |
क्रम
२
क्रम P
कूट सिद्धायतन नील
पूर्व विदेह
सीता
कीर्ति
नारी
अपर विदेह
रम्यक
अपदर्शन
&
नोट:- रा. वा. व चि. सा. में नं ६ पर नरकान्ता नामक कूट व देव कहा है।
८. रुक्मि पर्वत- ( पूर्व से पश्चिम की धोर
(ति. प. १४१२३४१-१२३३), (रा. बा. २३११११०१८३३१) (ह. पू. ५११०२-१०४) मि. सा. १७२७), (ज. प. २३०४४) |
देव जिनमंदिर
-
कूट सिद्धायतन रुक्मि (रूप्य )
रम्यक
नरकान्ता
बुद्धि
रूप्यकूला
हैरण्यवत्
८
मणिकांचन (कांचन)
नोट:- रा. वा. व त्रि. सा. में नं. ४ पर नारी नामक कूट व देव रहता है।
देव जिनमंदिर
अपनी अपनी पृथ्वी के संख्या योजन विस्तार वाले बिलों को राशि में से इन्द्रक बिलों के प्रमाण को घटा देने पर शेष संख्यात योजन विस्तार वाले प्रकीरक बिलों का प्रमाण होता है। इसी प्रकार अपनी अपनी पृथ्वी के असंख्यात योजन विस्तार वाले बिलों की संख्या श्रेणीबद्ध बिलों के प्रमाण को घटा देने पर श्रवशिष्ट श्रसंस्थात योजन विस्तार वाले प्रकीर्शक बिलों का प्रमाण रहता है ।
प. पृथ्वी में सं० यो० विस्ता० बिल ६०००००; असं० यो० वि० २४०००००, इन्द्रक १३, श्रे० ब० ४४२०, ६०००००-१३= ५६६६६७ सं० यो० वि० प्रकी० विल, २४००००० - ४४२० = २३६५५८० अ० यो दि० प्रकी० बिल ।
संख्यात योजन विस्तार वाले नरक बिल में नियम से संख्यात नारकी जीव, तथा असंख्यात योजन विस्तार वाले बिल में असंख्यात ही आएको जीव होते हैं ।
प्रथम इन्द्रक का विस्तार पंतालीस लाख योजन और में से अन्तिम इन्द्रक के विस्तार को घटाकर शेष में एक कम इन्द्रक को निकालने के लिये हानि और वृद्धि का प्रमाण समझना चाहिये
अन्तिम इन्द्रक का विस्तार एक लाख योजन है। इनमें प्रथम इन्द्रक के विस्तार प्रमाण का भाग देने पर जो लब्ध आवे उतना ( द्वितीयादि इन्द्रकों के विस्तार ४२००००० - १०००००+ (४१-१)- २१११ हानि-वृद्धि इस हानि-वृद्धि का प्रमाण इक्यानवें हजार छह सी छयासठ योजन और तीन से विभक्त दो कला है। द्वितीयादिक इन्द्रक के विस्तार को निकालने के लिए एक कम इच्छित इन्द्रक प्रमाण से उक्त क्षय और वृद्धि के प्रमाण को गुणा करने
पर जो गुम्पनफल प्राप्त हो उसको सीमित इन्द्रक के विस्तार में से घटा देने पर या अवधिस्थान इन्द्रक के विस्तार में मिलाने पर अभीष्ट इन्द्रक
का विस्तार निकलता है।
उदाहरण
-सीमंत और अवधिस्थान की अपेक्षा २५ वें सप्त नामक इद्रक का विस्तार क्ष. ० ६१६६ (२५ - १) - २२०००००
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