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क्रम ३ पहले क्षेत्र का नाम कूट सदृश नाम
पिछले क्षेत्र का नाम कुट सदृश नाम नोट:-ह. पु. में नं. ४ कूट पर दिक्कुमारी देवी का
निवास बताया है। ११. सौमनस गजवन्त-(मेरु से कुलगिरि की भोर)
(ति. प. ।४।२०३१-२०४३-२०४४), (रा. वा.।३। १०११३११७५॥१३) (ह. पु. १५२२१, २२७) (त्रि. सा७६१)
६. शिखरी पर्वत--(पूर्व से पश्चिम की मोर)
(ति. प. ।४।२३५-२३५६+ १२४३), (रा. वा. ॥३॥११॥ १२।१८४॥४), (ह. पु. ।५।१०५-१०८), त्रि. सा. १७२८), (ज. प. १६४५)
कूट सिद्धायतन
जिनमंदिर शिखरी हैरण्यवत रस वत्री रक्ता
रक्ता देवी लक्ष्मी
लक्ष्मी देवी कांचन (सुवर्ण) रक्तवती
रक्तावती देवी गन्धवती (गान्धार) गन्धवती देवी रवत (ऐरावत) गन्धवती देवी
मणिकांचन नोट:--रा. वा. में नं. ६,७,८,९.१०,११, पर क्रम रो
प्लक्षणकला, लक्ष्मी, नन्धदेवी, ऐरावत, मणि व कांचन नामक कुठ व देव देवी कहे हैं।
जनमदिर
सिद्धायतन सौमनस देवकुरु मंगल विमल कांचन
बत्समित्रा देवी
सुवत्सा (सुमित्रा देवी)
जिनमन्दिर
१०. विदेह के १६ वक्षार
विशिष्ट (रा. वा.) सिद्धायतन सौमनस देवकरु मंगलावत पूर्वविदेह कनक कांचन विशिष्ट
मंगल
(ति. प ।४।२३१०), (रा. वा. ॥३॥१०॥१३॥१७७।११) (ह. पु. १५१२३४-२३५), (त्रि. सा. १७४३) क्रम
सिद्धायतन जिनमंदिर
सुवत्सा वत्समित्रा
स्व वक्षार का नाम कूट सदृश नाम
४५०००००. -२२००.००=१३००००० सीमन्त की अपेक्षा । ६१६६६३ (२५-१)=२२,०००००, २२०००००+१०००००=२३००००० अवधि स्थान को अपेक्षा।
रत्न प्रभा पृथ्वी में सीमन्त इन्द्रक का विस्तार f यम से पैंतालीस लाख योजन प्रमाण है 1 (४५००००० यो०)।
निरय (नरक) नामक द्वितीय इन्द्रक के विस्तार का प्रमाण नवालीस लाख तेरासी सौ तेतीस योजन और एक योजना के तीन भागों में से एक भाग है। सीमंत वि० ४५००००-६१६६६३-४४०३३३३
गैरक (रौरव) नामक तृतीय इन्द्रक का विस्तार तेतालीस लाख सोलह हजार छह सौ छयासठ योजन और एक योजन के तीन भागों
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