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देव
वडय
३ विदेह के ३२ विजयार्ध
५ महाहिमवान (पूर्व से पश्चिम की ओर) (ति.प.॥४॥२२६०२३०३-२३०३)
तिप. ४११७२४-१७२६), रा. वा. ।३.१११४॥
१८३१४), ह. पु. ।५।७१-७२) (त्रि. सा. १७२४), क्रम कट
(ज. प. ३।४१) सिद्धायतन
देवों के नाम दक्षिणार्ध भरत विजया
सिद्धायतन
जिन मन्दिर खण्ड प्रपात बत् जानने
महाहिमवान
हैमवत पूर्णभद्र
रोहित विजयार्धकुमार
हरि (ह्रीं) मणिभद्र
देवों के नाम स्त्रिगुह्य
हरिकान्त भरत विजया
हरिवर्ष (उत्तरार्ध) स्वदेश बत जानने
वैधवण ४ हिमवान्
६ निषध पर्वत (पूर्व से पश्चिम की प्रोर)
(ति. प. |४|१७५८-१७६०), (रा. बा. ।३।११।६।१५३।१७), (ति. प. १४।१६३२+-६१५१), रा. वा. ३१२१॥२ (ह.पू. १८८-८९) (त्रि. सा. 1७२५), (ज. प.१३।४२) ११७२।२४), (हि. पु. ११५३-५५), (त्रि. सा. १७२१), . (ज. म. १३१४०)
कट
देव सिद्धायतन
जिन मन्दिर सिद्धायतन जिनमन्दिर
निषध हिमवान
हरिवर्ष भरत
पूर्व विदेह
हरि (ही) इलादेवी
बिजय गंगा गंगादेवी
सीतोदा श्री श्री देवी
अपर विदेह रोहितास्या
रोहितास्या देवी सिन्धु
सिन्धु देवी
नोट:-रा. वा. ब. बि.सा. नं०६ पर घृत याति नामक सुरा सुरा देवी
कूट व देव कहे जाते हैं। तथा ज. प. में नं. ४, ५, ६ हैमवत
पर कम से धृति, पूर्व और हरिविजय नामक क्टदेव वैश्रवण
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असंख्यात योजन विस्तार वाले नारकियों के बिलों में जघन्य अन्तराल सात हजार योजन और उत्कृष्ट अन्तराल असंख्यात योजन मात्र है । ज. अन्तराल ७००० यो.।
पूर्वोक्त प्रकीर्णक बिलों में से असम्यात योजन विस्तार बलि बहुत और असंख्यात योजन बिरतार वाले बिल थोड़े ही हैं। ये सब बिल अहोरात्र अन्धकार में व्याप्त है।
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