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जम्बू द्वीप के पर्वतीय कूट व तन्निवासी देश
१. भरत निजया - से परिवार की ओर) ति. प.।४।१४८ | १६७); (रा. वा.।३।१०।१७२।१०); (ह. पृ. ।५।२६); (नि. सा. ७३२-७३१); (ज.प. ।२।४६)
देव सिद्धायतन
जिनमन्दिर (दक्षिणार्ध) भरत खण्ड प्रपात
नृत्यमाल मणिभद्र बिजया कुमार पूर्णभद्र तिमिस्त्र गुह्य
कृतमाल (उत्तरार्ध) भरत
वैश्रवण नोट :-त्रि. सा. में मणिभद्र के स्थान पर पूर्णभद्र और पूर्णभद्र के स्थान पर मणिभद्र हैं। २ ऐरावत विजयार्ध-(पूर्व से पश्चिम की नोर) (ति.प.४१२३६७), (ह. पु.।५।११०-१२२), (त्रि. सा.। ७३३-७३५)
वैश्रवण
देव सिद्धायतन
जिनमन्दिर (उत्तरार्ध) ऐरावत खण्ड प्रपात
कृतमाल मणिभद्र विजया कुमार पूर्णभद्र तिमिस्त्र गुह्य
नत्यमाल (दक्षिणार्ध) ऐरावत नोट :-त्रि.सा. में न०२ व ७ पर क्रम से तिमिस्त्र गृह व खण्डप्रपात नाम कूट व कुतमाल देव बताये हैं। छह पश्चियों के सब ही प्रकीर्णक बिल मिलकर तेरासी लाख गब्बे हलार तीन सौ संतालीस होते हैं ८३६०३४० सब पृ. के. प्रकी. बिल ।
इन्द्रक बिलों का विस्तार संख्यात योजन, श्रेणी बद्ध बिलों का संख्यात योजन और प्रकीर्णक बिलो वा विस्तार उभय मिश्र अर्थात् कुछ का संख्यात और कुछ का असंख्यात, योजन है।
सम्पूर्ण बिल संख्या के पांच भागों में से एक भाग प्रमाण (1) बिलों का विस्तार संख्यात योजन, और शेष चार भाग प्रमाण (१) बिलों का विस्तार असम्यात योजन प्रमाण है।
सर्व बिल ८४०००००, संख्यात योजन विस्तार वाले १६८२०००, असं. यो. विस्तार चाले ६७२०००।
रल प्रभादिक पृच्चियों में कमशः छह लाम्य पांच लाख, तीन लाख, दो लाख साठ हजार, एक व.म बीस हजार और एक, इसने बिलो का विस्तार संस्थात योजन प्रमाण है।
संन्यात योजन प्रमाण बिल-रा.प्र. ६०००० श.प्र. ५००००० वा.प्र. ३०००००प.प्र. २००००० धू. प्र. ६०००० ल.प्र. १६EER म.त.प्र.११
रलप्रभादिक सब पश्यियो' में कम से चौबीस लाख, बीस लाख, बारह लाख, आठ लाख, चौबीस से गुणित सौ के वर्ग प्रमाण अर्थात् दो लाख चालीस हजार, चार कम अस्सी हजार, और चार इतने बिस असंख्यात योजन प्रमाण विस्तार वाले हैं।
अमस्यान योजन प्रमाण विस्तार वाले बिल-र.प्र. २४०००००; श. प्र. २००००० १२००००० पं प्र. ८०००००; धू. प्र. २४००० त, प्र. ७६६६६ म. त. प्र. ४ ।
संख्यात योजन विस्तार वाले नारकियों के बिलों में तिरछे रूप में जघन्य अन्तराल छह कोस और उत्कृष्ट अन्तराल उससे दुगुणा अर्थात् बारह कोस मात्र है ज. अन्तराल ६ उ. अ. कोस.१२ ।
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