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सागर तलव पाताल
पाटन २
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अवम्मित जल तल -:S
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वित्रा मशेदी
साखर भागका दूसरा पटल
१. जम्बूद्वीप को घेरकर २००,००० योजन विस्तृत बलयाकार यह प्रथम सागर स्थित है, जो एक नाव पर दूसरी नाव मुधी रखने से उत्पन्न हुए प्राकार वाले हैं। तथा गोल है।
२. इसके मध्य तल भाग चारों ओर १००८ पाताल या विवर हैं। ४ उत्कृष्ट, ४ मध्यम और १००० जघन्य विस्तार वाले हैं। तटों से ६५००० योजन भीतर प्रवेश करने पर चारों दिशाओं में चार ज्येष्ठ पाताल हैं । ६६५०० योजन प्रवेश करने पर उनके मध्य मध्यम विदिशा में चार पाताल और उनके मध्य प्रत्येक अन्तरदिशा में १२५, १२५ करके १००० जघन्य पाताल मुक्तावली रूप से स्थित हैं। १००,००० गोजन. गहरे महा पाताल नरक सीमन्तक बिल के ऊपर मंलग्न हैं।
३. तीनों प्रकार के पातालों की ऊंचाई तीन बराबर भागों में विभक्त हैं। तहां निचले भाग में वायु, ऊपर के भाग में जल और मध्य के भाग में यथायोग्य स्म से जल व वायु दोनों रहते हैं।
४. मध्य भाग में जल व वायु की हानि वृद्धि होती रहती है । शुक्ल पक्ष में प्रतिदिन २२२१ योजन वायु बढ़ती है और कृष्णपक्ष में इतनी ही घटती है। यहां तक कि इस पूरे भाग में पूर्णिमा के दिन केवल वायु ही तथा अमावस्या को केवल जल ही रहता है । पाताल में जल ब वायु की इस वृद्धि का कारण नीचे रहने वाले भवनवासी देवों का उक्छवास निःश्वास है।
५. पाताल में होने वाली उपरोक्त वृद्धि हानि से प्रेरित होकर सागर का जल शुक्ल पक्ष में प्रतिदिन ८००।३ धनुष ऊपर उठता है, और कृष्ण पक्ष में इतना ही घटता है। यहां तक कि पूर्णिमा को ४००० धनुष आकाश में ऊपर उठ जाता है और अवामस्या को पृथ्वी तल के समान हो जाता है (अर्थात ७००० योजन ऊंचा अवस्थित रहता है । लोगायणी के अनुसार सागर ११०० योजन तो सदा ही पृथ्वी तल से ऊपर अवस्थित रहता है। शुक्ल पक्ष में इसके जार प्रतिदिन ७०० योजन बढ़ता है और कृष्ण पक्ष में इतनाही घटता है। यहां तक कि पूर्णिमा के दिन ५००० योजन बढ़कर १६००० योजन हो जाता है।
६. समद्र के दोनों किनारों पर व शिखर पर आकाश में ७०० योजन जाकर सागर के चारों तरफ कूल १४२००० . वेलन्धर देवों की नगरियाँ है। तहां बाह्य व अभ्यन्तर वेदी के ऊपर क्रम से ७२००० और ४२००० और मध्य में शिखर पर २८००० है मतान्तर से इतनी ही नगरियां सागर के दोनों किनारों पर पृथ्वो तल पर भी स्थित हैं सग्गायणी
इस प्रकार तीन तथा सातवीं में केवल एक अवधिस्थान गाम का इन्द्रक बिन है।
धर्मादिक सातों पुत्रियों सम्बन्धी प्रश्रम इन्धक बिली के समीपवती प्रथम श्रेणीबद्ध बिलों के नामों का पूर्खादिक दिशाओं में प्रदक्षिण ऋम से निरूपण करते हैं।
धर्मा पृथ्वी में सीमन्त इन्द्रक बिल के समीप गुर्यादिक चारों दिशाओं में कम से कांक्षा, पिपासा, महाकाक्षा और अतिपिपासा, ये चार प्रथम श्रेणीबद्ध बिल है।
वंशा पृथ्वी में प्रथम अनित्य, दूसरा अविद्य तथा महानिद्य और चतुर्थ महाविद्य, ये चार श्रेणीबद्ध बिल पूर्वादिकः दिशाओं में स्तनक इन्द्रक बिल के समीप हैं।
मेघा पृथ्वी में दुःखा, वेदा, महादुःषा और चौथा महावेदा, ये चार श्रेणीबद्ध बिल पूर्वादिक दिशाओं में तप्त इन्दक बिल के समीप में हैं।
अंजना पृथ्वी में आर इन्दक बिल के समीप प्रथम निसृष्ट, द्वितीय निरोध, तृतीय अतिनिसृष्ट और चतुर्थ महानिरोध, ये चार श्रेणीबद्ध विल हैं।
तमक इन्द्रक बिल के समीप निरोध, विमर्दन अलिनिरोध और चौथा महाविमर्दन, ऐसे चार श्रेणीबद्ध बिल पूर्वादिक चारों दिशाओं में विद्यमान हैं।
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