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१३. विदेह के ३२ क्षेत्र
१. पूर्व पाकीदमान ता की वेदियों से आगे जाकर सीता व सीतोदा नदी के दोनों तरफ चार-चार यक्षारगिरि और तीन-तीन विभंगा नदियां एक वक्षार व एक विभंगा के श्रम से स्थित हैं। इन वक्षार व विभंगा के कारण उन नदियों के पूर्व व पश्चिम भाग पाठ-पाठ भागों में विभक्त हो जाते हैं। विदेह के ये ३२ खण्ड उसके ३२ क्षेत्र कहलाते हैं।
२. उत्तरीय पूर्व विदेह का सर्वप्रथम क्षेत्र कच्छा नाम का है। इनके मध्य में पूर्वापर लम्बायमान भरत क्षेत्र के विदेहका कच्या क्षेत्र विजयावत् एक विजयाध पर्वत है। उसके उत्तर में स्थित नील
कर start fryके ज्यारघर लागला-दिया करते है। । पर्वत को बन वेदी के दक्षिण पार्श्वभाग में पूर्व व पश्चिम दिशाओं में कुण्ड है, जिनसे रक्ता व रक्तोदा नाम की दो नदियां निकलती हैं । दक्षिणमुखी होकर बहती हई बे विजयाध
--014% -!-unti -|-- की दोनों गूफानों में से निकल कर नीचे सीता नदी में जा मिलती हैं। जिसके कारण भरत क्षेत्र की भांति यह देश भी छह खण्डों में विभक्त हो गया है। यहां भी उत्तर म्लेच्छ खण्ड के गच्छ साधु नेच्छाबाद ।। लेच्य खण्ड मध्य एक पगिरि है, जिस पर दिग्विजय के पश्चात चक्रवर्ती
वाप्रपात अपना नाम अंकित करता है, इस क्षेत्र के प्रायखण्ड की प्रधान नगरी का नाम क्षेमा है। इस प्रकार प्रत्येक क्षेत्र में दो नदियां
क खण्ड माग पडलेच्छ खण्ड व एक विजया के कारण छह-छह खण्ड उत्पन्न हो गये हैं। बिशेष यह है कि दक्षिण वाले क्षेत्रों में गंगा सिन्ध नदियां बहती हैं। मतान्तर से उत्तरीय क्षेत्रों में गंगा सिन्ध व दक्षिणी क्षेत्रों E-PH .
.-FFre.. में रक्ता रक्तोदा नदियाँ हैं।
३. पूर्व व अपर दोनों विदेहों में प्रत्येक क्षेत्र के सीता सीतोदा नदी के दोनों किनारों पर आर्यखण्डों में मागध, बरतन पौर प्रभास नाम वाले तीन-तीन तीर्थस्थान हैं।
४. पश्चिम विदेह के अन्त में जम्बूद्वीप की जगती के पास सीतोदा नदी के दोनों ओर, भूतारण्यक बन है। इसी प्रकार पूर्व विदेह के अन्त में जम्बू द्वीप को जगती के पास नदी के दोनों ओर देवारण्यक बन हैं।
४. अन्य द्वीप सागर निर्देश१. लवण सागर निश
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इन्द्रक बिल-र.प्र.१३, पा. प्र. ११, बा. प्र. पं.प्र. ७,धू.प्र. ५,त.प्र. ३, म. प्र.११
पहिले इन्द्रक बिल के आथित दिशाओं में उन्नचास और विदिशाओं में अड़तालीस श्रेणबिद्ध बिल हैं। इसके आगे द्वितीयादिक इन्द्रक बिलों के आश्रित रहने वाले श्रेणीबद्ध बिलों से एक-एक बिल कम होता गया है । (देखो मूल की सदृष्टि)।
उक्त सात भुमियों में रह को आदि लेकर एक पर्यन्त कुल मिलकर उनचास इन्द्रक बिल है।
पहिला सीमन्तक तथा द्वितीयादि निरय रोरुक, भ्रान्त, उदभ्रान्त, संभ्रात, असंभ्रान्त तप्त, प्रसित, बक्रान्त, अबक्रान्त, और विक्रान्त, इस प्रकार, ये तेरह इन्द्रक बिल प्रथम पृथ्वी में हैं। स्तनक, तमक, मनक, बनक, धात संत्रात जिहा, जिह्वक, लोल, लोलक और स्तनलोलुक, ये ग्यारह इन्द्रक बिल द्वितीय' पृथ्वी में है।
तप्त, शीत, तपन, तापन, निदाघ, प्रज्वलित, उज्जवलित, संज्वलित, संप्रज्वलित ये नौ इन्द्रक विल ततीय पृथ्वी में हैं। आर, मार, तार, तत्व (चर्चा), तमक, बाद और खडखट, ये सात इन्द्रक दिल चतुर्थ पृथ्वी में हैं। लमक, भ्रमक, झषक, याबिल (अन्ध्र) और तिमिश्र वे पांच इन्द्रक विल धूम' प्रभा पृथ्वी में हैं । छठी पृथ्वी में हिम, बर्दल और लल्लक