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नाम
गणना
विवरण व प्रमाण
द्रह
कुलाचलों पर ६ तथा दोनों कुरु में १०-(प. प. ११६७)।
१७६२०१०
नदियों के बराबर (ति.प. ४॥२३८६)।
वृक्ष
जम्बू व शाल्मली (ह. पु. ५)।
गुफाएँ
4.
३४ विजया! की (ह. पु. १५११०)।
वन
अनेक
मेर के ४ वन भद्रशाल नन्दन, सौमनस, ब पाण्डक । पूर्वापर विदेह के छोरों पर देवारण्यक व भूतारण्यक । सर्व पर्वतों के शिखरों पर, उनके मूल में नदियों के दोनों पाव भागों में इत्यादि।
कूट
चैत्यालय
अनेक
बेदियां
अनेक
(ति. प. ४।२।२३९६)। कुण्ड, वनसमूह, नदियां, देव, नगरियां, पर्वत, तोरण द्वार, द्रह दोनों वृक्ष प्रायं खण्ड के तथा विद्याधरों के नगर पादि सब पर चैत्यालय हैं-(दे० चैत्यालय)। उपरोक्त प्रकार जितने भी कुण्ड आदि तथा चैत्यालय आदि हैं उतनी ही उनकी वेदियां हैं। (ति. प. ॥४॥२३८८-१३६०)। जम्बू द्वीप के क्षेत्रों की सर्व पर्वतों की द्रहों की पद्मादि द्रहों की
(ज. प. शा६०-६७) | कुण्डों की
गंगादि महानदियों की
५२००
कुण्डज महानदियों की
कमल २२४१८५६ । कुल द्रह = १६ और प्रत्येक द्रह में कमल-१४०११६= (दे०
आगे द्रनिदेश) अब आठों पृथ्वियों के अघस्तन भाग में वायु से अवरुध क्षेत्र का घनफल कहते हैंइन आठों पृध्वियों में से प्रथम पृथ्वी के अपस्तन भाग में अवरुद्ध वायु के क्षेत्र का धनफल कहते हैं—एक राजु वि.कम सात राजु