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८.३
परिशिष्टाऽध्यायः
भावार्थ-अशुभ स्वप्न आने पर पंच नमस्कार मन्त्र का जाप करना चाहिये, अशुभ स्वप्न के बाद अगर शुभ स्वप्न आ जावे तो फिर शान्ति करने की कोई आवश्यकता नहीं है। १४३ ।।
स्वं प्रकाश्य गुरोरग्रे सुधीः स्वप्नं शुभाशुभम् ।
परेषामशुभं स्वप्नं पुरो नैव प्रकाशयेत् ।। १४४ ।। (सुधी:) बुद्धिमान व्यक्ति को (गुरोरगे स्व) गुरु के आगे स्वयं (शुभाशुभम् स्वप्न) शुभाशुभ स्वप्न को (प्रकाश्य) प्रकाशित करे (अशुभं स्वप्नं परेषाम्) अशुभ स्वप्न को दूसरे के आगे (पुरो नैव प्रकाशयेत्) पहले कभी नहीं प्रकाशित करे।
____ भावार्थ-बुद्धिमान व्यक्ति को पहले गुरु के आगे शुभाशुभ स्वप्न को कहना चाहिये, किन्तु अशुभ स्वप्न को दूसरे के आगे कभी नहीं कहे अर्थात् गुरु को छोड़कर स्वप्न की बात किसी दूसरे से नहीं कहे ।। १४४ ।।
निमित्तं स्वप्नजं चोक्त्वा पूर्वशास्त्रानुसारतः ।
लिङ्गेन ते ब्रुवे इष्टं निर्दिष्टे च यथा गमम्॥१४५ ।। (पूर्वशास्त्रानुसारतः) पहले कहे हुए शास्त्रानुसार (स्वप्नजं निमित्तं चोक्त्वा) स्वप्न निमित्त को कह कर (तं) अब मैं (लिङ्गेन) लिङ्ग निमित्त को (इष्टं ब्रुवे) कहना चाहता हूँ (निर्दिष्टं च यथा गमम्) और जैसा आगम में कहा गया है।
भावार्थ-पहले कहे हुऐ आगमानुसार स्वप्न निमित्त को कहकर अब मैं लिङ्ग निमित्त को कहूँगा जैसा पूर्वशास्त्र में कहा गया है।।१४५॥
शरीरं प्रथमं लिङ्गं द्वितीयं जलमध्यगम्।
यथोक्तं गौतमे नैव तथैव प्रोच्यते मया ।।१४६ ॥ (शरीरंप्रथमंलिङ्ग) शरीर प्रथम लिङ्ग है (द्वितीयं जल मध्यगम्) जल के मध्य का द्वितीय लिंग है (यथोक्तं गौतमे नैव) जैसा गौतम स्वामी ने कहा है (तथैव प्रोच्यते मया) वैसा ही मैं कहूँगा।
भावार्थ-शरीर प्रथम लिङ्ग है, जल के मध्यका द्वितीय लिंग है, जैसा गौतम स्वामी ने कहा वैसा ही मैं यहाँ पर कहता हूँ। १४६ ।।