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भद्रबाहु संहिता |
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भावार्थ- मल मूत्रादि से उत्पन्न स्वप्न आधि-व्याधि से उत्पन्न स्वप्न का फल निष्फल होता है।। १४० ।।
शुभः प्रागशुभ: पश्चादशुभः प्राक् शुभस्ततः ।
पाश्चात्यः फलदः स्वप्न: पूर्वदृष्टश्च निष्फलः ॥१४१ ।। उक्त स्वप्न (शुभ:) शुभ (प्रागशुभ:) पूर्व में शुभ (पश्चादशुभ:) पश्चात् अशुभ (ततः प्राक् शुभः) उसके बाद पूर्व में शुभ (पश्चात्यः फलदः स्वप्न:) पश्चात् का स्वप्न फलदायी होता है (पूर्व दृष्टश्चनिष्फल:) पूर्व का देखा हुआ स्वप्न निष्फल होता है।
भावार्थ- उपर्युक्त शुभ, पूर्व में शुभ, बाद का अशुभ उस के बाद का शुभ, पीछे का फलदायी और पहले का स्वप्न निष्फल होता है।। १४१ ।।
प्रस्वपेदशुभे स्वप्ने पूर्वदृष्टश्च निष्फलः ।
शुभे जाते पुन: स्वप्ने सफल: स तु तुष्टिकृत् ।।१४२ ॥ (प्रस्वषेद शुभेस्वप्ने) अशुभ स्वप्न के आने पर पुनः सो जाय तो (पूर्वदृष्टश्चनिष्फल:) पहले देखा हुआ स्वप्न का फल निष्फल हो जाता है। (शुभेजाते पुन: स्वप्ने) शुभ स्वप्न देखने पर जाग्रत रहे तो (सफल: स तु तुष्टिकृत) वह फल तुष्टि को करने वाला होता है।
भावार्थ-अशुभ स्वप्न के आने पर जाग्रत रहकर पुन: सो जाय तो उसका फल नष्ट हो जाता है अशुभ स्वप्न देखने पर जाग्रत रहे तो उसका फल तुष्टिकारक होता है।। १४२।।
प्रस्ववेद शुभे स्वप्ने जप्त्वा पञ्चनमस्क्रियाम्।
दृष्टे स्वप्ने शुभे नैव दुःस्वप्ने शांतिमाचरेत् ।।१४३॥ (प्रस्वपेदशुभे स्वप्ने) अशुभ स्वप्न दिखाई देने पर (पञ्चनमस्क्रियाम् जप्त्वा) पंच नमस्कार मन्त्र का जाप करे (दृष्टे स्वप्ने शुभै) शुभ स्वप्न दिखाई देने पर (दुःस्वप्ने शांति नैवमाचरेत्) खोटे स्वप्न की शान्ति करने की कोई आवश्यकता नहीं।