________________
भद्रबाहु संहिता
८०४
स्नातं लिप्तं सुगन्धेन घर मन्त्रेण मन्त्रितम्।
अष्टोत्तर शतेनापि मन्त्री पश्येत्तदङ्गकम् ।। १४७ ।। (स्नातंलिप्तंसुगन्धेन) स्नान कर सुगन्धित पदार्थों को अपने शरीर पर लेप करे (वरमन्त्रणमन्त्रितम्) श्रेष्ठ मन्त्रों से मंत्रित करे, (अष्टोत्तर शते नापि) एक सौ आठ बार मन्त्र पढ़े (मन्त्रीत्तदङ्गकम्) मन्त्रवादी फिर उस अङ्ग को (पश्येत्) देखें।
भावार्थ-~मन्त्रवादि प्रथम स्नान कर सुगन्धित पदार्थों का अपने शरीर पर लेप करे श्रेष्ठ मन्त्रों को एक सौ आठ बार पढ़कर अङ्गो का निरीक्षण करे।। १४७॥ मन्त्र-ॐ ह्रीं ला: ह्वः प: लक्ष्मी इवीं कुरू कुरू स्वाहा। इस मन्त्र को
१०८ बार पढ़े। सर्वाङ्गेषु यदा तस्य लीयते मक्षिकागण:।
षण्मासं जीवितं तस्य कथितं ज्ञान दृष्टिभिः ।। १४८ ।। (यदा) जब (सर्वाङ्गेषु मक्षिकागण: तस्य लीयते) सम्पूर्ण अङ्ग में उसके मक्खियाँ कारण न होने पर भी लगती हुई दिखे तो (तस्य जीवितं षण्मासं) उसकी आयु मात्र छह महीने की शेष है (ज्ञानदृष्टिभिः कथितं) ज्ञान दृष्टि वालों ने कहा है।
भावार्थ-जब सम्पूर्ण शरीर में अकारण ही मक्खियाँ लगती हुई दिखे तो उसकी आयु छह महीने की समझो।।१४८॥
दिग्भागं हरितं पश्येत् पीत रूपेण शुभ्रकम् ।
गन्धं किञ्चिन्न यो वेत्ति मृत्युस्तस्य विनिश्चितः ।। १४९ ।। (दिग्भागं हरितं पश्येत्) अगर रोगी दिशा भाग को हरी देखे वा (पीतरूपेण शुभ्रकम्) पीला देखे या सफेद देखे (गन्धंकिञ्चिन्नये वेत्ति) एवं गन्ध बिल्कुल भी अनुभव नहीं करे तो (तस्य मृत्यु विनिश्चितम्) उसकी मृत्यु निश्चित ही होती है।
भावार्थ- अगर रोगी दिशा भाग को हरी, पीली वा सफेद देखे एवं गन्ध सुगन्ध का थोड़ा बहुत भी अनुभव नहीं करे तो उसकी आयु थोड़ी है ऐसा समझो॥१४९।।
-
--