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परिशिष्टाऽध्यायः
वाला या कोण से रहित (उपरि सधूमच्छायं खण्डं वा) वा धूम से सहित वा खण्ड रूप दिखे तो (तस्यगतमायुः) उसकी आयु समाप्त हो गई समझो।
भावार्थ-जो कोई द्वितीया का चन्द्रमा तीन कोर वाला या कोण रहित या धूम से सहित खंड-खंड रूप में देखे तो उसका शीघ्र मरण होने वाला है।। ४३॥
अथवा माहीनं पलिनं चन्द्रपुरुषसाइण्यम्।
प्राणी पश्यति नूनं मासादूवं भवान्तरं याति ।। ४४॥ (अथवा) अथवा जो (चन्द्रश्च) चन्द्रमां (मृगाङ्गहीनं) मृगचिन्ह से रहित दिखे एवं (मलिनं) मलिन दिखे (पुरुष सादृश्यम्) एवं उस के अन्दर पुरुषाकृति (प्राणीपश्यतिनून) अगर रोगी देखे तो निश्चित समझो (मासादूर्ध्वं भवान्तरं याति) एक महीने में वह उर्ध्व गति को प्राप्त कर जायगा।
भावार्थ-अथवा जो कोई रोगी चन्द्रमा को मृगाचिन्ह से रहित देखे और चन्द्रमा को मलिन देखे अथवा उसमें पुरुषाकृति दिखे तो समझो वह एक महीने में मर जायगा ॥४४॥
इति प्रोक्तंपदार्थस्थमरिष्टं शास्त्रदृष्टितः।
इतः परं प्रवक्ष्यामि रूपस्थञ्च यथागमम् ॥४५॥ (इति) इसी प्रकार (शास्त्रदृष्टितः) आगम के अनुसार (पदार्थस्थमरिष्टं प्रोक्तं) पदस्थ अरिष्ट को मैंने कहा (इत:) अब मैं (यथागमम्) जैसा आगम में कहा है उसी प्रकार (परं रूपस्थञ्च प्रवक्ष्यामि) पर रूपस्थ अरिष्ट को कहूँगा।
भावार्थ-इसी प्रकार जैसा पूर्वागम में कहा था वैसा ही मैने यहां पर पदस्थ अरिष्टों को कहा, अब मैं रूपस्थ अरिष्टों को आगमानुसार कहूंगा || ४५ ॥
स्वरूपं दृश्यते यत्र रूपस्थं तनिरूप्यते ।
बहुभेदं भवेत्तत्र क्रमेणैव निगद्यते॥ ४६॥
(स्वरूपं दृश्यतेयत्र) जहां पर रूप दिखता हो (तन्निरूप्यते रूपस्थं) उसको रूपस्थ अरिष्ट कहा गया है (बहुभेदंभवेतत्र) वह अरिष्ट बहुत भेद वाला कहा गया है (क्रमेणैव निगद्यते) उसको क्रम से कहूंगा।