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भद्रबाहु संहिता
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भावार्थ- रोगी के अंजुली प्रमाण चांवल और कोई चूर्ण को लेकर पकावे फिर उससे रोगी की अंजुली भरे और उसकी अंजुली से ज्यादा कम हो जाय तो समझो उसकी शीघ्र मृत्यु हो जायगी॥ ४०॥
अभिमन्त्र्यस्तत्र तनुः तच्चरणैर्मापयेच्च सन्ध्यायाम् । __अपि ते पुनः प्रभाते सूत्रे न्यूने हि मासमायुष्कम् ।। ४१॥
(अभिमन्त्र्यस्तत्र) सूत्र को २१ या १०८ बार मंत्रित कर (सन्ध्यायाम्) सायंकाल में (तनुः) शरीर के प्रमाण (तच्चरणैर्भापयेच्च) उस सूत्र को नाप कर रखे (अपि ते पुन: प्रभाते सूत्रे न्यूने हि) फिर प्रात:काल उस सूत्र से रोगी को नापे और वह सूत्र अगर शरीर से कम हो जाय तो (मासमायुष्कम्) एक महीने की आयु समझो।
भावार्थ---सायंकाल में रोगी के शरीर प्रमाण सूत्र को मंत्रित कर रखें फिर प्रात:काल उस सूत्र से पुनः रोगी को नापे अगर कम हो जाये तो समझो रोगी की आयु एक महीने की है अर्थात् रोगी एक महीने में मर जायगा ।। ४१॥
मंत्र:-ॐ ह्रींणमों अरिहंताणं कमले कमले विमले विमले उदरदेवि इटिमिटिपुलिन्दिनी स्वाहा। इस मंत्र से सूत्र को १०८ बार मंत्रित करे।
श्वेताः कृष्णा: पीताः रक्ताश्च येन दृश्यन्ते दन्ताः ।
स्वस्य परस्य च मुकुरे लघुमृत्युस्तस्य निर्दिष्टः ॥४२॥ (येन) जो रोगी (मुकुरे) दर्पण में (स्वस्य परस्य च) स्वयं के अथवा पर के (दन्ताः) दांत (श्वेता: कृष्णाः पीताः रक्ताश्चदृश्यन्ते) सफेद या काले, तथा पीले तथा लाल देखते तो (तस्य लघु मृत्यु: निर्दिष्टः) उसकी शीघ्र मृत्यु होगी, ऐसा निर्देश कहा गया है।
भावार्थ-जो रोगी स्वयं के या पर के दांत दर्पण में काले, सफेद, पीले या लाल देखे तो उसकी शीघ्र मृत्यु हो जाती है।। ४२।।
द्वितीयायाः शशिबिम्बं पश्येत् त्रिशृङ्गपरिहीनम्।
उपरि सधूमच्छायं खण्डं वा तस्य गतमायुः॥४३ ।। (द्वितीयाया: शशिबिम्ब) द्वितीया का चन्द्रमा (त्रिशङ्ग परिहीनम्) तीन कोण