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भद्रबाहु मंहिता
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(स्वप्ने) स्वप्ने में (रुद्राक्षी) रोद्ररूप धारण कर (विकृता) विकृत रूप धारण कर (नारी) स्त्री यदि (उत्तरंदक्षिणांदिशं च कर्षति) उत्तर या दक्षिण में खींचकर ले जावे तो (शीघ्रं मृत्यु:समीहते) शीघ्र ही मृत्यु प्राप्त करता है।
भावार्थ-स्वप्न में यदि मनुष्य रौद्र रूप और विकृत रूप धारण कर कोई स्त्री उत्तर या दक्षिण दिशा में स्वयं को खींचकर ले जावे तो उसकी शीघ्र ही मृत्यु हो जाती है। ॥ ५९||
जटी मुण्डी विरूपाक्षां मलिनां मलिन वाससम्।
स्वप्ने यः पश्यति ग्लानिं समूहे भयमादिशेत्॥६०॥ (स्वप्ने) स्वप्न में (य:) जो मनुष्य (जरी) जटाधारी (मुण्डी) मुण्डी, (विरूपाक्षां) विरूप कार्य वाले, (मलिनांमलिनवाससाम) मलिन व मलिन कपड़े वाली स्त्री (पश्यति) दिखाई देवे (ग्लानि) और ग्लानि हो जावे तो (समूहेभय मादिशेत्) समूह से भय उपस्थित हो ऐसा जानो ।
भावार्थ-जटाधारी, सिरमुण्डित, विरूपाकृति वाली, काली स्त्री यदि स्वप में ग्लानिपूर्वक देखना सामूहिक भय का सूचक है।। ६०॥
तापर्स पुण्डरीकं वा भिक्षु विकलमेव च।
दृष्ट्वास्वप्ने विबुध्येत ग्लानिं तस्य समादिशेत्॥११॥ (स्वप्ने) स्वप्पे में जो मनुष्य (तापसं) तापस (पुण्डरीकं) पुण्डरीक (वा) वा (भिडं विकल मेव च) विकल भिक्षु को (दृष्ट्वा) देखकर (विबुध्येत्) विबुधित हो जाता है तो (तस्य) उसको (ग्लानि समादिशेत्) ग्लानि होती है।
भावार्थ-जो मनुष्य स्वप्न में तापस, पुण्डरीक, विकल भिक्षु को देखकर जाग्रत हो जाता है उसे ग्लानि होती है॥६१॥
स्थले वाऽपि विकीर्येत जले वा नाश माप्नुयात् ।
यस्य स्वप्ने नरस्यास्य तस्य विन्द्यान्महद् भयम् ॥६२॥ . (यस्य) जिस (नरस्य) मनुष्य के (स्वप्ने) स्वप्न में अपने आपको (स्थले वाऽपि) भूमि पर और भी (विकीर्येत) फेल जाना देखे अथवा (जलेवा नाशमाप्नुयात्) जले में नाश देखे तो (तस्यमहद् भयम् विन्द्याद) उसको महानभय होगा ऐसा जानो।