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________________ ७२५ | पविशतितमोऽध्याय: भावार्थ-जिस मनुष्य को स्वप्न में अपने आप को भूमि पर या जल में फैलता हुआ देखे तो समझो उसे महान् भय होने वाला है।। ६२॥ वल्लीगल्मसमोवक्षो वल्मीकोयस्य जायते। शरीरे तस्य विज्ञेयं तदंगस्य विनाशनम्॥१३॥ (यस्य) जिस मनुष्य के (शरीरे) शरीर में (वल्लीगुल्मसमोवृक्ष) बल्ली गुल्म वृक्ष (जायते) होते हुए दिखे और (वल्मीको) वामी हो जाती है तो (विज्ञेयं) जानना चाहिये कि (तस्य) उसका (तदंगस्य विनाशनम्) विनाश अवश्य होगा। भावार्थ:-जिस मनुष्य के शरीर में स्वप्न में लता, गुल्म, वृक्ष और वामी होती हुई दिखे तो जानना चाहिये कि उसका नाश अवश्य होगा॥६३ ।। मलो वा वेणु गुल्मी वा खघुरो हरितो द्रुमः। मस्तके जायते स्वप्ने सस्य साप्ताहितः स्मतः ॥ ६४॥ (स्वप्ने) स्वप्न में जिस मनुष्य के (मस्तके) मस्तक पर (मलो वा वेणु गुल्मो वा) मल, बांस, गुल्म एवं (खजूरोहरितोद्गुमः) खजूर और हरे वृक्षों को (जायते) होता हुआ देखे तो (तस्य) उसकी (साप्ताहिकः स्मृतः) एक सप्ताह में मृत्यु हो जाती है। भावार्थ-स्वप्न में जिस मनुष्य के मस्तक पर, मल बांस, गुल्म, खजुर और हरे वृक्षों का होता हुआ दिखे तो उसकी एक सप्ताह में मृत्यु होती है।। ६४ ॥ ___ हृदये यस्य जायन्ते तद्रोगेण विनश्यति। . अनङ्ग जायमानेषु तदङ्गस्य विनिर्दिशेत् ॥६५॥ (यस्य) जिसको (हृदये) हृदय में उपर्युक्त वृक्षादिक (जायन्ते) उत्पन्न होते हैं (तद्रोगेण विनश्यति) तो व्यक्ति का हृदयरोग से नाश होता है (अनम जायमानेषु) जिस अंग में ये वृक्षादिक दिखे तो (तदनस्य विनिर्दिशेत्) उसी अंग के रोग से उसकी मृत्यु होगी। भावार्थ-यदि हृदय में उक्त वृक्षादिको का उत्पन्न होना स्वप्न में देखें तो हृदय रोग से उसका विनाश होता है। जिस अंग में उक्त वृक्षादिकों का उत्पन्न होना स्वप्न में दिखलाई पड़ता है। उसी अंग की बीमारी उसके द्वारा होती है ।। ६५॥
SR No.090074
Book TitleBhadrabahu Sanhita Part 2
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages1268
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size28 MB
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