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पविशतितमोऽध्यायः
रक्तानां
करवीराणामुत्पलानामुपानयेत्। लम्भो वा दर्शने स्वप्ने प्रयाणा वा विधीयते ॥५६॥ (स्वप्ने) स्वप्न में (रक्तानां करवीराणाम) लाल कनेर के फुलों को (उत्पलानामुपानयेत्) अथवा नील बालों का (पानि लामो यान प्रा. काना देखने से (प्रयाणावाविधीयते) उसका प्रयाण होगा।
भावार्थ-जो स्वप्न में लाल कनेर के फूलों को व नील कमलों को तोड़ना देखे अथवा ऐसे ही देखे तो उसका प्रयाण होने वाला है ऐसा समझो ।। ५६ ॥
कृष्णं वासो हयं कृष्णं योऽभिरूढः प्रयाति च।
दक्षिणां दिशमुद्विग्नः सोऽभिप्रेतोयतस्तत: ।। ५७॥ (यो) जो मनुष्य अपने को (कृष्णवासो) काले कपडे पहन कर (हयंकृष्णं) काले घोड़े पर (अभिरूढः) सवारी कर (दक्षिणां दिश मुद्धिग्न प्रयाति च) उद्विग्न होता हुआ दक्षिण दिशा में जावे तो (सोऽभिप्रेतो यतस्तत:) उसकी मृत्यु अवश्य होती है।
भावार्थ-जो मनुष्य स्वप्न में अपने को काले कपड़े पहने हुए काले घोड़े पर सवारी कर उद्विग्न मन होता हुआ दक्षिण दिशा में जावे तो उसकी मृत्यु अवश्य होती है॥५७॥
आसनं शाल्मलीं वापि कदली पालिभद्रिकाम्।
पुष्पितां यः समारूढः सवितमधि रोहति ।।५८॥ (य:) जो मनुष्य स्वप्न में (पुष्पितं) फूलों में सहित (शाल्मलींवापिदली) शाल्मली, केला (पालिभद्रिकाम्) देवदारु व नीम के पेड़ पर (आसन) बैठना (समारूढ:) या चढ़ना देखने से (सवित मधिरोहति) उसे संपत्ति प्राप्त होती है।
भावार्थ-जो मनुष्य स्वप्न में फूल से सहित शाल्मली, केला वा नीम या देवदारु के पेड़ पर चढ़कर बैठना देखने से उसे संपत्ति प्राप्त होती है।। ५८॥
रुद्राक्षी विकृता काली नारी स्वप्ने च कर्षति । उत्तरं दक्षिणां दिशं मृत्युः शीघ्रं समीहते॥५९।।