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| कविंशतितमोऽध्यायः
लिखते नख:) नख से जिह्वा को खुरच ने लगे और (दीर्घ या रक्तयास्थित्वा) लाल वर्ण की झील में खड़ा होते हुए दिखे तो (स) वह (नीचोऽपि) नीच होने पर भी (नृपो भवेत्) राजा होता है।
भावार्थ- जो मनुष्य स्वप्न में जहां तहां खड़ा होकर नख से जिह्वा को खुरचने लगे और लाल वर्ण की झील में खड़ा दिखे तो वह नीच होने पर भी राजा होता है।। १३॥
भूमि सासरजलां सरील कर काममा
बाहुभ्यामुद्धरेद्यस्तु सराज्यं प्राप्नुयान्नरः॥१४॥
जो मनुष्य स्वप्न में (भूमि) पृथ्वी पर वा (ससागरजलां) समुद्र के जल में (सशैल वन काननाम्) पर्वत पर या वन में या जंगल में खड़ा दिखे या (बाहुभ्यामुद्धरेद्यस्तु) भुजाओं से इन सबको तैरता हुआ दिखे (सराज्यप्राप्नुयान्नर:) वह मनुष्य राज्य को प्राप्त करता है।
भावार्थ-जो मनुष्य स्वप्न में पृथ्वी पर, समुद्र के जल में, पर्वत पर, वन में, जंगल में खड़ा दिखे, तैरता हुआ दिखे तो वह राज्य की प्राप्ति करता है।। १४ ॥
आदित्यंवाऽथ चन्द्रं वा यः स्वप्ने स्पृशते नरः। श्मशानमध्ये निर्भीकः परं हत्वा चमूपतिम्॥१५॥ सौभाग्यमर्थ लभते लिङ्गच्छेदात्स्त्रियं नरः।
भगच्छेदे तथा नारी पुरुष प्राप्नुयात् फलम् ।। १६॥ (य:) जो (नर:) मनुष्य (स्वप्ने) स्वप्न में (आदित्यवाऽथ चन्द्र) सोमयाचन्द्र को (स्पृशते) स्पृश करता हुआ देखता है अथवा (चमूपतिम् हत्वा) सेनापति को मारकर (निर्भीक:) निर्भीक भयरहित होता हुआ (श्मशानमध्ये) श्मशान के अन्दर घूमता है वह (सौभाग्यमर्थलभते) सौभाग्य और अर्थ की प्राप्ति करता है (लिङ्गच्छेदात् स्त्रियं नर:) मनुष्य अगर लिङ्गच्छेद अपना देखे तो स्त्री की प्राप्ति होती है तथा (भगच्छेदेनारी) योनी का छेद होता हुआ देखे तो स्त्री को (पुरुषं प्राप्नुयात् फलम्) पुरुष की प्राप्ति का फल मिलता है।
भावार्थ—जो मनुष्य स्वप्न में सोम या चन्द्र को स्पृश करता हुआ देखे