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भद्रबाहु संहिता |
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अथवा सेनापति को मारकर श्मशान में अकेला घूमता हुआ देखे तो समझो सौभाग्य की प्राप्ति होती है और धन की प्राप्ति होती है। अगर मनुष्य अपना लिङ्ग मग्न होते हुए देखे तो उसे स्त्री को प्राप्ति होती है और स्त्री अगर अपनी योनी मग्न होती हुई देखे तो उसे पुरुष की प्राप्ति होती है।। १५-१६।। ।
शिरो वा छिद्यते यस्तु सोऽसिना छिद्यतेऽपि वा।
सहस्त्रलाभं जानीयाद् भोगांश्च विपुलान् नृपः॥१७॥
जो (नृपः) राजा स्वप्न में (शिरो वा छिद्यते) अपने सिर का छेदन होता हुआ देखे (यस्तु सोऽसिना छिद्यतेऽपि वा) अथवा तलवार के द्वारा छेदित होता हुआ देखे तो (सहस्रलाभं जानीयात्) उसको हजारों लाभ मिलते है ऐसा जानना चाहिये और (भोगांश्चविपुलान्) विपुल मोम को प्राय करता।
__ भावार्थ-जो राजा स्वप्न में अपने सिर का छेद होता हुआ देखे अथवा तलवार से अपने को छेदित होता हुआ देखे तो वह सहस्रों लाभ प्राप्त करता है और विपुल भोगो को प्राप्त करता है।। १७॥ धनुरारोहतेयस्तुविस्फारण
समार्जने। अर्थलाभं विजानीयात् जयं युधि रिपोर्वधम् ।। १८॥ जो मनुष्य स्वप्न में (धनुरारोहतेयस्तु) धनुष का आरोहण करता है (विस्फारण समाजने) विस्फारण करता है प्रत्यंचा को समेटना आदि कार्य करता है उसको (अर्थलाभं विजानीयात) अर्थलाभ होता है तो ऐसा जानना चाहिये (जयं युधि रिपोर्वधम्) कि युद्ध में जय, और शत्रु का वध होता है।
- भावार्थ-जो मुनष्य स्वप्न में धुनषारोहण करता है विस्फारण करता है समेटता है उसको धन का लाभ होता है और ऐसा जानना चाहिये कि युद्ध में जय, और शत्रु का वध होता है॥ १८॥
द्विगाढ़ हस्तिनारूढः शुक्लो वाससलङ्कृतः ।
य: स्वप्ने जायते भीतः समृद्धिं लभते सतीम्॥१९॥ जो स्वप्न में (शुक्लोवाससलङ्कृत:} शुक्लावस्त्र पहनकर अलंकारो से सुसज्जित