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भवमा संहिता
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जो मनुष्य स्वप्न में (श्वेतं गजं समारूढः) श्वेत हाथी पर चढ़कर (पुष्करिण्यांतुयस्तीरे) नदी के किनारे पर स्वयं (शालि भोजनम् भुञ्जीत) शाली भोजन को खाता हुआ देखे तो (स) वह (अचिराद्) शीघ्र ही {राजा भवेत्) राजा होता
भावार्थ-जो मनुष्य स्वप्न में स्वयं सफेद हाथी पर चढ़कर नदी के किनारे पर शाली धान्य का भोजन करता हुआ देखे तो वह शीघ्र ही राजा होता है॥१०॥
सुवर्ण रूप्य भाण्डे वा य: पूर्वनवरा स्नुयात्।
प्रसादे वाऽथ भूमौ वा याने वा राज्यमाप्नुयात्॥११॥ (य:) जो व्यक्ति स्वप्न में (प्रसादे वाऽथ भूमौवा याने वा) प्रासाद भूमि या सवारी पर आरूढ हो (सुवर्ण रूप्य भाण्डे वा) सोने चांदी के बर्तन में (पूर्वनवरास्नुयात्) स्मान, भोजन पानी आदि करता हुआ स्वयं को देखे तो वह (राज्य माप्नुयात्) राज्य की प्राप्ति करता है।
__भावार्थ-जो व्यक्ति स्वप्न में स्वयं को प्रासाद भूमि या सवारी पर आरोहण करता हुआ देखे अथवा सुवर्ण या चांदी के बर्तनों में भोजन पान या स्नान करता हुआ देखे तो समझो वह राजा होगा ।।११।।
श्लेष्म मूत्रपुरीषाणि यः स्वप्ने च विकृष्यति।
राज्यं राज्यपलं वाऽपि सोऽचिरात् प्राप्नुयान्नरः॥१२॥ (य: नर:) जो मनुष्य (स्वप्ने) स्वप्न में (श्लेष्म मूत्रपुरीषाणि च विकृष्यति) कफ, मूत्र, मल आदि को इधर-उधर खींचता हुआ दिखाई पड़े तो (सो) वह (राज्य राज्यफलंवाऽपि) राजा के राज्यफल को (अचिरात् प्राप्नुयात्) शीघ्र प्राप्त करता है।
भावार्थ-जो मनुष्य स्वप्न में अपने को कफ मूत्र, या मल को इधर-उधर खींचता हुआ देखे तो वह राजा के राज्यफल को शीघ्र प्राप्त करता है॥१२॥
यत्र वा तत्र वा स्थित्वाजिह्वायां लिखते नखः।
दीर्घया रक्तया स्थित्वा स नीचोऽपि नृपो भवेत्॥१३॥ जो व्यक्ति स्वप्न में (यत्र वा तत्र वा स्थित्वा) जहाँ तहाँ खड़ा होकर (जिह्वायां