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भद्रबाहु संहिता
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(सूर्यो) सूर्य (पितश्लेष्मान्तिक:) फ्ति और कफ प्रकृति वाला (नक्षत्रं देवता भेवत्) नक्षत्रों का देवता है (राहुस्तु भौमोविज्ञेयो) राहु और मंगलकी जानना चाहिये कि (प्रकृतौ च शुभाशुभौ) प्रकृति शुभाशुभ है।
भावार्थ—सूर्य पित्त और कफ प्रकृति वाला है, नक्षत्रों का देवता है राहु और मंगल भी प्रकृति का शुभाशुभ रूप है, ऐसा आप जानो॥४०॥
आर्यस्तमादितं पुष्यो धनिष्ठा पौष्णवी च भृत्।
केतुसूर्यों तु वैशाखौ राहुवरुणसम्भवः ॥४१॥ (आर्यस्तमादितं पुष्यो) उत्तरा फाल्गुनी पुनर्वसु (पुष्यो) पुष्य (धनिष्ठा) धनिष्ठा (पौष्णवी च भूत) हस्तये चन्द्रादि ग्रहों के नक्षत्र हैं (केतुसूर्यौ तु वैशाखौ) केतु और सूर्य के विशाखा नक्षत्र है (राहूर्वरुणसम्भव:) और राहु का शतभिषा नक्षत्र
भावार्थ- उत्तरा फाल्गुनी, पुनर्वसु, पुष्प, धनिष्ठा और हस्त ये चन्द्रादि ग्रहों के नक्षत्र है, केतु और सूर्य के विशाखा नक्षत्र है, राहु का शतभिषा नक्षत्र जानो।।४१॥
शुक्र: सोमश्च स्त्रीसंज्ञः शेषास्तु पुरुषा ग्रहाः। नक्षत्राणि
विजानीयानामभिर्दैवतैस्तथा॥४२॥ (शुक्रः सोमश्चस्त्री संज्ञ:) शुक्र और सोम स्त्री संज्ञक है (शेषास्तु पुरुषा ग्रहा:) शेष पुरुष संज्ञक है (नक्षत्राणि) नक्षत्रों के लिंग (नामभिदेवतैस्तथा) उनके नामके अनुसार (विजानीयात्) जानना चाहिये।
___ भावार्थ-शुक्र और सोम स्त्री संज्ञक है बाकी ग्रह पुरुष संज्ञक है, नक्षत्रों का लिंग उनके नामानुसार जानना चाहिये॥४२॥
ग्रहयुद्धमिदं सर्व यः सम्यगवधारयेत्। स विजानाति निर्ग्रन्थो लोकस्य तु शुभाशुभम्॥४३॥