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चतुर्विशतितमोऽध्यायः
(स जो) वह जो (निर्ग्रन्थो) निर्ग्रन्थ है वो (ग्रह युद्ध मिदं सर्व) ग्रहों के सभी युद्धों को जानता है (यः सम्यगवधारयेत्) वो भी अच्छी तरह से अवधारणा करता है (सविजानाति लोकस्य) वह लोकालोक के (शुभाशुभम) शुभाशुभ को जानता है।
भावार्थ-जो निर्ग्रन्थ ग्रहों के युद्ध को जानता है, वह लोका-लोक के शुभाशुभ को भी अच्छी तरह से अवधारण करता है। ४३ ।।।
विशेष वर्णन--इस अध्याय में ग्रह युद्ध का वर्णन किया है, इसके द्वारा जीवों का जय पराजय का ज्ञान होता है।
गुरु, शनि, बुध और सूर्य नागर संज्ञक है केतु, अंगारक, चन्द्र, राहु, और शुक्र कीयायी संज्ञा है।
यहाँ पर वर्णों के अनुसार ग्रहों संज्ञा भी कही है, जैसे सफेद पाण्डु, पीला, कपिल, लोहित वर्ण ये नागरिक संज्ञा वाले है।
काला, नीला, श्याम, कपोत और भस्म के समान हो तो उसको यायि संज्ञा वाले ग्रह कहे हैं।
आचार्यों ने ग्रह युद्ध के चार भेद कहे हैं भेद, उल्लेख, अंशुमर्दन, अपसव्य। इनके अनुसार, जय, पराजय, हानि, लाभ, सुख दुःख प्राप्त होता है।
आचार्यों ने ग्रह युद्ध के चार भेद कहे हैं भेद, उल्लेख अंशुमर्दन अपसव्य। इन के अनुसार जय, पराजय, हानि, लाभ, सुख-दुःख प्राप्त होता है।
जो ग्रह दक्षिण दिशामें रूखा, कम्पायमान, टेढ़ा, क्षुद्र और किसी ग्रह से ढका हुआ विकरालप्रभा हीन और विवर्ण दिखलाई पड़ता है, वह ग्रह पराजित कहलाता है। इससे विपरीत लक्षण वाला ग्रह जयी कहलाता है।
शनि और मंगल का एक राशि पर होना महावृष्टि का कारण होता है, ऐसे योग में वर्षा अच्छी होती हैं। दो महीने तक वर्षा होती है बाद में रुक जाती
बुध, गुरु, शुक्र, सूर्य और चन्द्रमा इन ग्रहों के स्थान पर होने से ने ऋत्य दिशा में प्रजा का नाश होता है, दुर्भिक्ष, अन्न और भैंसों का अभाव होता है उक्त ग्रहस्थिति, वर्मा, लंका, दक्षिण भारत मद्रास, महाराष्ट्र इन प्रदेशों के लिये महाकष्ट