________________
६६५
चतुर्विंशतितमोऽध्यायः
स्वामी बुध है सुख-दुःख का स्वामी मंगल है पुष्प और फलों का स्वामी केतु है वस्तुओं का स्वामी सूर्य है जल लताओं का स्वामी चन्द्रमा है।। ३५-३६ ।।
धान्यस्यार्थ तु नक्षत्रं तथाऽऽरः शनिः सर्वशः।
प्रभुर्वा सुख दुःखस्य सर्वे होते त्रिदण्डवत्॥ ३७॥ (धान्य स्यार्थं तु नक्षत्रं) धान्य के लिये जो नक्षत्र है (तथाऽऽर: शनि सर्वश:) तथा स्वामी राहु है, और सबके (प्रभुर्वा सुख दुःखस्य) सुख और दुःख का स्वामी शनि है, (सर्वे होते त्रिदण्डवत्) सभी यहाँ पर त्रिदण्ड के समान है।
भावार्थ-धान्य का स्वामी राहु और सुख-दुःख का स्वामी शनि है, सबको यहाँ पर त्रिदण्ड के समान माना है॥३७॥
वर्णानां शङ्करो विन्द्याद् द्विजातीनां भयङ्करम्।
स्वपक्षे परपक्षे च चातुर्वण्य विभावयेत्॥३८॥ जब ग्रहों का युद्ध होता है तब यांनी शf बिन्धाद्) वर्गों में शंकर होता है (द्विजातीनां भयङ्करः) दो जातियों में भयंकर होता है, (स्वपक्षे परपक्षे च) स्व पक्ष में और पर पक्ष में (चातुर्वर्ण्य विभावयेत्) चारों वर्ण दिखाई पड़ते हैं।
भावार्थ-जब ग्रहों का युद्ध होता है तब वर्गों में शंकर हो जाता है दो जातियों में भयंकर होता है स्व पक्ष और पर पक्ष में चार वर्ण दिखाई पड़ते हैं।। ३८॥
वातः श्लेष्मा गुरुर्जेयश्चन्द्रः शुक्रस्तथैव च।
वातिको केतु सौरों तु पैत्तिको भौमउच्यते ।। ३९॥ (वात: श्लेष्मागुरुज्ञेयश्चन्द्रः) वात और कफ प्रकृति वाले गुरु और चन्द्र है (शुक्रस्तथैव च) और शुक्र भी उसी प्रकार है (वातिकौ केतु सौरौ तु) केतु और शनि वात प्रकृति वाला है (पैतिको भोम उच्यते) मंगल पीत प्रकृति वाला है।
भावार्थ-गुरु चन्द्र और शुक्र वात और कफ प्रवृति वाले है, उसी प्रकार केतु वात प्रकृति वाला है. शनि भी बात वाला है मंगल पीत प्रकृति वाला है॥३९॥
पित्तश्लेष्मान्तिकः सूर्यो नक्षत्रं देवता भवेत्। राहुस्तु भौमो विज्ञेयौ प्रकृतौ च शुभाशुभौ ॥४०॥