________________
भद्रबाहु संहिता
६६०
(श्वेतः श्वेतं ग्रहं यत्र हन्यात् यदा सवर्चसा) जब श्वेत ग्रह श्वेत ग्रह का परस्पर घात करे अच्छे वर्ण वाला होकर (तु) तो (नागराणां मिथो भेदो) नागरिकों में परस्पर भेद (विप्राणां भयं भवेत्) ब्राह्मणों को भय होता है।
भावार्थ-जब श्वेत ग्रह पर श्वेत ग्रह का घात करे और अच्छा वर्ण हो तो नगरनिवासियों में परस्पर भेद पड़ता है, ब्राह्मणों को भय उत्पन्न होता है ऐसा समझो।। १८॥
लोहितो लोहितं हन्यात् यदा ग्रह समागमे।
नागराणां मिथो भेदःक्षत्रियाणां भयं भवेत् ॥१९॥ (यदा) जब (लोहितो लोहित) लोहित को लोहित (ग्रह) ग्रह (समागमे) समागम के समय में (हन्यात्) घात करे तो (नागराणां मिथो भेदः) नगरनिवासियों में परस्पर भेद पड़ता है (क्षत्रियाणां भयं भवेत्) क्षत्रियों में भय उत्पन्न होता है।
भावार्थ-जब लोहित ग्रह लोहित ग्रह के समागम के समय में घातित करे तो नगरनिवासियों में भेद पड़ता है, और क्षत्रियों में भय उत्पन्न होता है।। १९॥
पीत: पीतं यदा हन्याद ग्रहं ग्रहसमागमे।
वैश्यानां नागराणां च मिथो भेदं तदाऽऽदिशेत् ॥२०॥ (यदा) जब (पीत: ग्रह) पीत ग्रह (पीतं) पीले ग्रह को ग्रह (समागमे) ग्रह के समागम समय में (हन्याद्) घात करे तो (तदा) तब (वैश्यानां नागराणां च) वैश्यों में और नगरनिवासियों में (मिथो भेदं) परस्पर भेद (आऽदिशेत्) पड़ता है ऐसा दिखता है।
भावार्थ-जब पीले ग्रह को पीला ग्रह समागम के समय में घातित करे तो वैश्य और नगरनिवासियों में परस्पर भेद पड़ता है ऐसा जानो॥२०॥
कृष्ण: कृष्णं यदा हन्यातु, ग्रहं ग्रहसमागमे।
शूद्राणां नागराणाश्च मिथो भेदं तदादिशेत् ।। २१॥ (यदा) जब (ग्रह समागमे) ग्रहों के समागम के समय में (कृष्णः ग्रहं कृष्णं हन्यात) कृष्ण ग्रह कृष्ण ग्रह का घात करे तो (शूद्राणां नागराणाश्च) शूद्रों का और