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| चतुर्विशतितमोऽध्याय:
सूर्यकाश्च सुराः क्षुद्राः पिशाचा वनवासिनः।
तन्नामधेयास्तद्भक्ताः पीड्यन्ते राहुधातने॥१५॥ (राहुधातने) राहु के घातित होने पर (बर्बराश्च) बर्बर (किराताश्च) किरात (पुलिन्दा) पुलिन्द (द्रविडास्तथा) द्रविड तथा (मालवा) मालवा (मलपावङ्गा) मलय, बा (कलिकाः) कलिज (पार्वतास्तथा) पर्वतवासी तथा (सूर्यकाश्च) सूर्य का और (सूराः) सूर, (शूद्राः) शूद्रः (पिशाचा) पिशाच (वनवासिनः) वनवासी, (तन्नमधेयास्तद्भक्ता:) और उस नाम के धारी व उनके भक्त (पीड्यन्ते) पीड़ित होते हैं।
भावार्थ-राह के पातित होने पर बर्बर, किरात, पुलिन्द, द्रविड तथा मालव, मलय, बा, कलिङ्ग, पर्वतवासी, सूर्यक, सूर, क्षुद्र, पिशाच, वनवासी और उस नामधारी या उनके भक्त पीडित होते हैं॥१४-१५॥
यायिनः ख्यातयाः सस्यः सोरठा द्रविडास्तथा। अङ्गा बङ्गा कलिङ्गाश्च सौरसेनाश्च क्षत्रियाः॥१६॥ वीराश्चोग्राश्च भोजाश्च यज्ञे चन्द्रश्च साधवः।
पीड्यन्ते शुक्र घातेन सङ्ग्रामश्चाकुलो भवेत्॥१७॥ (शुक्रधातेन्) शुक्र के घातित होने पर (यायिनः) युद्ध से आने वाले (ख्यातयाः) ख्याति प्राप्त (सस्य:) धान्य, (सोरठा) सोरठ (द्रविडस्तथा) तथा द्रविड, (अङ्गा बना) अंग, बंग (कलिजाश्च) कलिंग (सौरसेनाश्च) और सौरसेन (क्षत्रिया:) क्षत्रिय (वीराश्चोग्राश्च) वीर, उग्र और (भोजाश्च) भोज (यज्ञे चन्द्रश्चसाधवः) यज्ञ में काम करने वाले साधु, चन्द्रवंशी सभी (पीड्यन्ते) पीड़ित होते हैं और (सङ्ग्रामश्चाकुलो भवेत्) संग्राम में आकुलित होते हैं।
भावार्थ-शुक्र ग्रह के धातित होने पर युद्ध आने वाले, ख्याति प्राप्त धान्य, सोरठ, द्रविड, अंग, बंग, कलिंग, सौरसेन, क्षत्रिय, वीर, उग्र, भोज, साधु, चन्द्रवंशी ये सभी पीडित होते हैं, और युद्ध से आकुलित होते हैं॥१६-१७।।
श्वेत: श्वेतं ग्रहं यत्र हन्यात् सुवर्चसा यदा। नागराणां मिथो भेदो विप्राणां तु भयं भवेत्॥१८॥
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