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ऋयोविंशतितमोऽध्यायः
करने वाले, (गोपा) ग्वाले, (गोजीविनश्चापि) गायों की आजीविका करने वाले और भी (धनुस्सङ्ग्राम जीविन:) धनुष से संग्राम करने की जीविका बाले (तिल:) तिल, (कुलस्था) कुलथी, (माषाश्च) उड़द, (माषा) चौला, (मुदगाश्च) मुंग (तुष्पदाः) चौपये, उसी प्रकार (स्थावर यकिञ्चन्) स्थावर व जो कुछ भी (पीड्यन्ते) पीड़ा को प्राप्त होते हैं।
भावार्थ-चन्द्रमा के द्वारा बुध का घात होने पर राजा, खनिज लोग नागरिक सुथार, ग्वाले, गायों पर जीविका करने वाले धनुषाकार, तिल, कुलथी, चौला, उड़द, मूंग, चौपाये उसी प्रकार स्थावर जो कुछ भी है, वे सब पीड़ा को प्राप्त होते है।। ४६-४७॥
कनकं मणयो रत्नं शकाश्च यवनास्तथा। गुर्जरा पड़वा मुख्या: क्षत्रिया मन्त्रिणो बलम्॥४८॥ स्थावरस्य वनीकाकुनये सिंहला नृपाः ।
वणिजां वनशख्यं च पीड्यन्ते सूर्ययातेन ॥४९॥ चन्द्रमा के द्वारा (सूर्य पातेन) सूर्य का घात हो तो (कनकं मणयो रत्न) सोना, मणि, रत्न (शकाश्च) शक और (यवनास्तथा) यवन तथा (गुर्जरा) गुहार (पहृवा) पल्लव (मुख्याः क्षत्रिया) मुख्य क्षत्रिय (मन्त्रिणो बलम्) बलवान मन्त्री, (स्थावरस्य) स्थावर के समीपवर्ती (सिंहला नृपा) सिंहल (वणिजां) वणिक (कुनये) कुनय (वनशख्यं च) और वन में रहने वाले पीड़ा को प्राप्त होते हैं।
भावार्थ-चन्द्रमा के द्वारा सूर्य का घात होने पर सोना, मणि, रत्न, शक, यवन तथा गुहरा, पल्लव, क्षत्रियों में मुख्य, बलवान् मन्त्री, सिंहल के राजा स्थावर वन के नजदीक रहने वाले और बनिये, वनवासी पीड़ा को प्राप्त होते हैं॥४८-४९॥
पौरेयाः शूर सेनाश्च शका वाहीक देशजाः। मत्स्या: कच्छाश्च वस्याश्च सौवीरा गन्धिजास्तथा॥५०॥ पीड्यन्ते केतुघातेन ये च सत्त्वास्तथाश्रयाः। निर्घाता पाप वर्ष वा विज्ञेयं बहुशस्तथा ।। ५१॥ चन्द्रमा के द्वारा (केतुघातेन) केतु का घात हो तो (पौरेयाः) पुरवासी,