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| भद्रबाहु संहिता |
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भावार्थ-चन्द्रमा के द्वारा शनि का घात होने पर यवनों के साथ-साथ पशु, पक्षी, वैद्य, भैंस, शबर, शक, सिंहल, द्रमिल, काच, बन्धुक, पल्लव के राजा, पुलिन्द्र, कोंकण, भोज, कुरु, दस्यु और क्षमा पीड़ित होते है॥४२-४३ ।।
यस्य यस्य य नक्षत्र मेकशो द्वन्द्वशोऽपि वा।
ग्रहा वामं प्रकुर्वन्ति तं हिंसन्ति सर्वशः॥४४॥ (यस्य यस्य य नक्षत्र) जिस-जिस नक्षत्र को (मेकशो) अकेला (ग्रहा) ग्रह या (द्वन्द्वशोऽपि वा) दो-दो ग्रह (वामं प्रकुर्वन्ति) वाम भाग को करते हैं (तं तं) उस-उस और (हिंसन्ति सर्वशः) सब तरह हिंसा करता है।
भावार्थ-जिस-जिस नक्षत्र को अकेला ग्रह दो-दो ग्रहों को वाम भाग में करता है, तो उस उस ओर सब तरफ हिंसा होती है।। ४४॥
जन्मनक्षत्र घातेऽथ राज्ञो यात्रा न सिद्धयति।
नागरेण हतश्चाल्प: स्वपक्षाय न यो भवेत् ॥४५॥ जिस (राज्ञो) राजा का (जन्म नक्षत्रघातेऽथ) जन्म नक्षत्र घातित होता है उसकी (यात्रा) यात्रा (न सिद्ध्यति) सिद्ध नहीं होती है (हतचाल्पः) थोड़ा घात भी होता है (नागरेण) नगर निवासी भी (स्वपक्षायन यो भवेत्) उसके पक्ष में नहीं होते हैं।
भावार्थ-जिस राजा का जन्म नक्षत्र धातित होने पर उसकी यात्रा सफल नहीं होती है, थोड़ा घात भी होता है नगर निवासी भी राजा के पक्ष में नहीं होते हैं।। ४५॥
राजा चावनिजा गर्भा नागरा दारुजीविनः। गोपा गोजीविनश्चापि धनुस्सङ्ग्राम जीविनः॥४६।। तिलाः कुलस्था माषाश्च माषा मुद्गाश्चतुष्पदाः।
पीडयन्ते बुधधातेन स्थावरं यच्च किञ्चन ॥४७॥ चन्द्रमा के द्वारा (बुधघातेन) बुध का घात होने पर (राजा) राजा (चावनिजा गर्भा) खान में कार्य करने वाला, (नागरा) नागरिक (दारुजीविनः) लकड़ी का काम