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भद्रबाहु संहिता
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(शूरसेनाश्च) सौरसेन (शका) शक (वाहीक) वाहीक (देशजाः) देश में उत्पन्न होने वाले, (मत्स्या) मत्स्स (कच्छाश्च) कच्छवासी, (वस्याश्च) वस्य वासी और (सौवीराः) सौवीर (गन्धिजास्तथा) गन्धिल वा (ये) जो (सत्त्वास्तथाश्रया) उनके आश्रित लोग है (पीड्यन्ते) वह पीड़ा को प्राप्त होते हैं (निर्घाता) घात होता है (बहुशस्तथा) बहुशवह (पापवर्ष विज्ञेयं) वर्ष पाप वर्ष जानना चाहिये।
भावार्थ-चन्द्रमा के द्वारा केतुका घात होने पर पुरवासी, सौरसेन, शक, वाहीक, मत्स्य, कच्छीवस्य, सौवीर, गन्धिलवासी और उनके निकटतम पीड़ित होते हैं, मारे जाते हैं वह वर्ष पाप वर्ष कहलाता है।। ५०-५१॥
पाण्ड्याः केरलाश्चोला: सिंहलाः साविकास्तथा। कुनपास्ते सयार्थाश्च मूलका वनवासकाः॥५२॥ किष्किन्धाश्च कुनाटाश्च प्रत्यनाश्च वनेचराः।
रक्तपुष्पफलांश्चैव रोहिण्यां सूर्य चन्द्रयोः॥५३॥ (रोहिण्यांसूर्यचन्दयो:) रोहिणी को सूर्य और चन्द्र के घातित होने पर (पाण्ड्याः ) पाण्डय (केरलाश्चोला) केरल, चोल (सिंहल) सिंहल, (साविकास्तथा) साविक (कुनपास्ते) कुनप (तयार्थाश्चमूलका) विदर्भ (वनवासकाः) वनवासी (किष्किन्धाश्च) किष्किन्धवासी (कुनाटाश्च) कुनाट वासी (प्रत्यग्राश्च बनेचराः) वनचर (रक्तपुष्पफलांश्चैव) लाल पुष्प फलादिक पीड़ित होते हैं।
भावार्थ-रोहिणी को सूर्य चन्द्रघातित होने पर पाण्ड्य केरल, चौल, सिंहल, साविक, कुनप, विदर्भ, वनवासी, किष्किन्ध, कुनाट, वनचर लाल पुष्प फलादिक पीड़ित होते हैं।। ५२-५३॥
एवं च जायते सर्व करोति विकृति यदा।
तदा प्रजा विनश्यन्ति दुर्भिक्षेण भयेन च॥५४॥ (यदा) जब (एवं च जायते) इस प्रकार चन्द्रमा के (विकृति) विकृत होने पर (सर्वं करोति) सब. (तदा) तब (प्रजा विनश्यन्ति) सारी प्रजा नाश को प्राप्त हो जाती है (दुर्भिक्षेण भयेन च) दुर्भिय और भय से।
___ भावार्थ-जब इस प्रकार का चन्द्रमाविकृत रूप धारण करता है, तब सारी प्रजा दुर्भिक्ष और भय से नाश हो जाती है।॥५४॥